(ग्रंथ क्या है यह एक तिलिस्म है. जब तक दूर हैँ, तभी तक सम्मोहन से आप बचे हुए हैँ. एक बार इस तिलिस्म मेँ घुस भर जाइए, फिर उस से बाहर निकलना आप के लिए नामुमकिन है.)
—प्रोफ़ैसर डाक्टर महेश दुबे (नई दुनिया, 16 अप्रैल 1997 मेँ प्रकाशित)
(इंदौरनिवासी प्रो. दुबे गणित विशेषज्ञ हैँ)
अरविंद कुमार और श्रीमती कुसुम कुमार द्वारा तैयार किया गया हिंदी का यह पहला समांतर कोश (थिसारस) भारतीय वांग्मय की उसी विशाल शब्द परंपरा की एक कड़ी है, जिस मेँ हमारे प्राचीन मनीषियोँ ने एक शब्द, अनेक शब्द, शब्द से बनते शब्द, रूप बदलते शब्द और भिन्न अर्थवत्ता लिए हुए शब्दोँ की चर्चा की है. इसीलिए इस समांतर कोश के विकास का उद्गम मुझे वहीँ दिखाई देता है, जहाँ भर्तृहरि कहते हैँ:
वक्त्रान्यथैव प्रकारान्तो भिन्नेषु प्रति पत्तृषु।
स्वप्रत्ययानुकारेण शब्दार्थ प्रविभज्यते।।
या
एकेन बहुभिश्चार्थो बहुधा परिकल्पियते।
बीस वर्षों की सतत शब्द साधना के बाद इस दंपति ने यह कोश तैयार कर हिंदी के गौरव को बढ़ाया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाषा जगत मेँ उसे प्रतिष्ठित किया है. एक शायर ने कहा है:
मैँ न मूसा हूँ और न पीछे लश्करे फिरौन है,
एड़ियाँ घिसती गईं और रास्ता होता गया.
इस लंबे और तवील सफ़र का रास्ता उन्होँ ने ख़ुद तय किया है, जो श्लाघनीय है.
यह एक अद्भुत ग्रंथ है – भव्य और मनोरम. ग्रंथ क्या है यह एक तिलिस्म है. जब तक दूर हैँ, तभी तक सम्मोहन से आप बचे हुए हैँ. एक बार इस तिलिस्म मेँ घुस भर जाइए, फिर उस से बाहर निकलना आप के लिए नामुमकिन है. दुर्निवार है इस का आकर्षण! क्योँकि फिर खुलती जाती है शब्द दर शब्द एक रूप संपदा, हमारे सामने बिखरती जाती है एक ख़ुशबू जो हमेँ मख़मूर कर देती है. हम शब्द शृंखलाओँ मेँ बँधे रह जाते हैँ – ठगे से! और मन ही मन गुनगुनाने लगते हैँ – साधौ! शब्द साधना कीजै.
थिसारस एक बहुआयामी बहुफलकीय शब्द है. इसे समझा जा सकता है पर इसे इस की संपूर्ण अर्थवत्ता के साथ अभिव्यक्त नहीँ किया जा सकता. मूल रूप से यह यह ग्रीक भाषा का शब्द है, जिस का अर्थ होता है कोश या ख़जाना. अत: सीधे सादे अर्थ मेँ पीटर मार्क रोजेट के अँगरेजी थिसारस के बारे मेँ आइफ़र ब्राउन ने लिखा है:
थिसारस व्याख्यात्मक शब्दकोश नहीँ होता. इस की शाब्दिक विपुलता ही नाम कोश (ट्रैज़र) को न्यायोचित बनाती है. थिसारस मेँ मिलेँगे शब्द, उन के अर्थ, उन के पर्याय और विलोम. इस प्रकार जहाँ थिसारस एक शब्द से अनेक शब्दोँ तक की यात्रा है, वहीँ यह अर्थ से शब्द तक पहुँचने का माध्यम भी है. लिखते या अनुवाद करते समय उचित और सटीक शब्दोँ की तलाश थिसारस मेँ ही की जा सकती है. शब्दशिल्पियोँ के लिए यह एक प्रयोगशाला भी है और एक सशक्त औज़ार भी! इस प्रकार थिसारस एक सामान्य शब्दकोश पर्यायवाची कोश या विलोम शब्द संग्रहोँ से कहीँ भिन्न है, अधिक व्यापक और समग्र है.
शब्दोँ से शब्दोँ तक की यह यात्रा एक बृहत् सांस्कृतिक विरासत की सनातन गाथा है और अनेक सामाजिक परिवर्तनोँ के बदलते स्वरूपोँ को अपने आप मेँ समेटे है. पर्यायवाची होते हुए भी हर शब्द अपने पर्याय से भिन्न होता है. फलस्वरूप यह शब्दयात्रा, शब्दोँ के नाम, उन के अर्थ रहस्योँ तथा उन के पारस्परिक संबंधोँ के प्रति हमारी जिज्ञासा बढ़ाती है. इस प्रकार हर बार एक नई शब्द संधान यात्रा की संभावना बनी रहती है.
शब्द चलते हैँ, शब्द चलाते हैँ. शब्द यात्री हैँ, यायावर हैँ. वे विस्मृत हो जाते हैँ, तो कई बार खो जाते हैँ. वे स्वयं बदल जाते हैँ या उन का अर्थ! नए विचारोँ, नई जीवन शैलियोँ, नए अनुसंधानोँ और परिवर्तनोँ के कारण भी नई शब्दावली बनती है. प्रत्येक शताब्दी के साथ एक नई भाषा का जन्म होता है. नए नए शब्दोँ से हमारा परिचय बढ़ता है – तभी थिसारस आवश्यक होता है.
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हिंदी मेँ यह पहला और एकमात्र थिसारस है. इस मेँ 1100 शीर्षक, 23,759 उपशीर्षक और 1,60,850 अभिव्यक्तियाँ हैँ. यह दो खंडोँ मेँ है – एक संदर्भ खंड जिस मेँ शब्दोँ को विषय क्रम से रखा गया है. दूसरा है अनुक्रम खंड जिस मेँ शब्दोँ को अकारादि क्रम या कोश के अनुसार रखा गया है और शब्दोँ के मुख्य अर्थ नीचे दिए गए हैँ. प्रत्येक शब्द के आगे एक संख्या लिखी हुई है – जो हमेँ इस के संदर्भ खंड मेँ ले जाती है. संदर्भ खंड मेँ शीर्षक और उप शीर्षक हैँ. उदाहरण के लिए संदर्भ खंड के 11वेँ शीर्षक – मरुथल मेँ 12 उपशीर्षक प्रविष्टियाँ हैँ. इन के अंतर्गत हमेँ मैदान, वनस्पतिहीन मैदान, वृक्षहीन मैदान, घास, दर्भ घास, मरुथल, मरुस्वर्ग जैसे शब्दोँ के पर्याय मिलते हैँ. इस के बाद 12वाँ शीर्षक है – वन उपवन, जिस की 36 उपशीर्षक प्रविष्टियाँ हमेँ वन, अभयारण्य, अनेक प्रकार के उपवनोँ, वृक्षरोपण, वनमहोत्सव जैसे शब्दोँ की जानकारी देती हैँ. ये दोनोँ मुख्य शीर्षक एक दूसरे के विलोम हैँ. संदर्भ खंड मेँ शब्दोँ को व्याकरण के अनुसार संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण आदि क्रम मेँ रखा गया है. शीर्षक के अंतर्गत उपशीर्षक परस्पर संगत हैँ. हर शीर्षक के ऊपर या नीचे के शीर्षक स्वाभाविक रूप से या तो संगत हैँ या विपरीत हैँ. इस प्रकार यह एक तात्कालिक कोश का कार्य तो करता ही है, साथ ही हमेँ एक से अनेक शब्दोँ तक ले जाता है और उन के विलोम भी उपलब्ध कराता है.
इस मेँ हैँ शब्द, शब्द से बने शब्द, उन के उपलब्ध ढेर सारे पर्याय और विलोम. उदाहरण के लिए एक शब्द प्रकाश देखेँ. अनुक्रम खंड मेँ इस के चार अर्थ दिए गए हैँ और प्रत्येक के आगे दी संख्या हमेँ संदर्भ खंड मेँ इन के पर्याय तक ले जाती है. फिर अनुक्रम खंड मेँ प्रकाश से बनीँ 48 शब्द प्रविष्टियाँ हैँ जिन के पर्याय संदर्भ खंड मेँ उपलब्ध हैँ. संदर्भ खंड मेँ शीर्षक 268 अंधकार और 306 अज्ञान का है, जो प्रकाश के अर्थों क्रमश: उजाला और ज्ञान के विलोम हैँ. इस प्रकार की प्रविष्टियाँ इसे संपूर्णता देती हैँ और पर्यायवाची शब्दोँ की विपुलता इसे सामान्य शब्दकोश से अधिक समृद्ध बनाती है.
अँगरेजी के हज़ारोँ शब्द हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी मेँ इतने रच बस गए हैँ कि वे भारतीय भाषा परिवार के ही हो गए हैँ. समांतर कोश मेँ अँगरेजी के ऐसे ही शब्दोँ और उन से प्रसूत शब्दोँ को स्थान मिला है. इस मेँ उर्दू के शब्द भी हैँ और भरपूर हैँ. इस मायने मेँ इसे उर्दू का छोटा या कामचलाऊ लुग़त कहना कोई अतिशयोक्ति नहीँ होगी. कुछ मलयालम (अडल), तमिल (कुरंडल) और पंजाबी (कुड़माई) शब्दोँ को भी जगह मिली है. यही नहीँ, ढूँढ़ने पर इस मेँ जापानी, चीनी, लैटिन और हिब्रू भाषा के शब्द भी मिल जाएँगे. भाषायी सीमा को ताड़ कर प्रचलित या प्रासंगिक शब्दोँ को एक बृहत् भाषा परिवार के सदस्योँ के रूप मेँ रखने का यह एक अभिनव प्रयास है.
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समांतर कोश मेँ बहुत से नए शब्द प्रस्तावित किए गए हैँ. समांतर कोश के रचनाकारोँ के अनुसार ‘जब किसी अँगरेजी तकनीकी शब्द का रोमन या ग्रीक मूल शब्द उपलब्ध था और उस का भारोपीय स्रोत उसे संस्कृत भाषा की किसी धातु के नज़दीक ले जाता था, तो उस धातु का विकास कर के ही ये शब्द प्रस्तावित किए हैँ.’ फलस्वरूप उन्होँ ने प्रोटोन (ग्रीक: प्रथम) के लिए प्रथोण, पाज़ीट्रान के लिए घनोण, न्यूट्रान के लिए नपुंसोण और मीसोन के लिए मध्योण शब्द प्रस्तावित किए हैँ. हिंदी के विज्ञान जगत मेँ इन शब्दोँ का स्वागत किया जाना चाहिए. इन्हेँ स्वीकार किया जाना चाहिए. नई वैज्ञानिक शब्दावली इसी प्रकार बनती है.
कृष्ण विवर (ब्लैक होल)
शब्दोँ की संख्या असीमित है. सभी शब्द एक स्थान पर आ जाएँ, यह संभव नहीँ है, परंतु फिर भी कुछ महत्वपूर्ण शब्द जैसे कृष्ण विवर (अँगरेजी का ब्लैक होल मिल जाएगा), व्हाइट ड्वार्फ़ (श्वेत वामन) और रेड जायंट (रक्त दानव) इस मेँ स्थान नहीँ पा सके हैँ. गवर्निंग बाडी नहीँ है. सी.डी. की प्रविष्टि मेँ कांपैक्ट डिस्क दिया हुआ है पर सी.पी.यू. मेँ सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट नदारद है. लेसर (लाइट एंप्लिफ़िकेशन बाइ स्टीम्युलेटेड एमीशन आफ़ रेडिएशन) जैसे अनेक शब्द अब हमारे कोशोँ के दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हैँ. परिभाषामूलक या संकल्पनात्मक शब्दोँ की अपनी समस्याएँ हैँ. हिंदी की उच्चारण पद्धति ने भी अँगरेजी के बहुत से शब्दोँ का देशज रूपांतर किया है. लफ़टैन या गिरमिटिया जैसे शब्दोँ के साथ क्या सलूक़ किया जाना चाहिए? ऐसे बहुत से प्रश्न हैँ जो इस समांतर कोश के प्रकाशन के साथ ध्यान मेँ आते हैँ. विश्वास है कि इस के अगले संस्करण मेँ रचनाकारोँ का ध्यान इस ओर अवश्य जाएगा. कंप्यूटर प्रलेखन के लिए थिसारस तैयार करने का उन का विचार स्वागतयोग्य है. भारतीय भाषाओँ मेँ यह सुविधा अभी उपलब्ध नहीँ है. अच्छा है कि इस की शुरूआत हिंदी से होने जा रही है. तब प्रूफ़ रीडिंग जैसे कार्य कंप्यूटर से किए जा सकेँगे और वे अधिक त्रुटिहीन होँगे.
इस समांतर कोश के पृष्ठोँ को पलटना एक विराट शब्द महोत्सव मेँ से हो कर गुज़रने जैसा है. हिंदी की यह एक शीर्षस्थ और गौरवमय उपलब्धि है. भवानीप्रसाद मिश्र ने अपनी एक कविता मेँ लिखा है:
मज़ा आ जाता था / जब शब्दोँ का समवेत स्वर / निर्माण का आनंद / उठ कर गगन तक / छा जाता था.
यह ऐसा ही अवसर है. आइए, हम सब समवेत स्वरोँ मेँ इस का स्वागत करेँ.
कंप्यूटर के माध्यम से अब शब्दोँ को एक भाषा से दूसरी भाषा मेँ ले जाया जा सकना संभव होगा. फलस्वरूप अन्य भारतीय भाषाओँ मेँ भी ऐसे थिसारस तैयार होँगे जिन से कि भारतीय भाषाओँ का एक विराट समांतर कोश बन सकेगा.
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