ओमप्रकाश… मंत्री… मंत्री जी

In Culture, Memoirs, People by Arvind KumarLeave a Comment

 

चले जाना एक घनिष्ठ मित्र का

· जो साठ पैँसठ साल का अंतरंग संबंध तोड़ कर अचानक चला गया, उस के बारे मेँ लिखना आसान नहीँ होता, ख़ासकर तब जब आँखेँ नम होँ, दिल भरा हो तरुण अवस्था के काँग्रेस सेवा दल के मित्रों मेँ से अब मंत्री ही बचा था. यशपाल गया भगवती प्रसाद कक्कड़ (जो मंत्री और मुझे मिला कर करौल बाग़ काँग्रेस सेवा दल के बिग थ्री मेँ था) गया और बहुत से चेहरे विलीन हो गए कुछ बचे भी हैँ यादव भाई (जीआरएस यादव) पर वह भी शारीरिक अक्षमता से पीड़ित रहते हैँ

जब से यशपाल (कपूर) नेहरू जी के स्टाफ़ मेँ चला गया तो पूरा समय नहीँ दे पाता था. लेकिन हम लोगोँ की वैसी ही मित्रता उस के अंतिम दिनोँ तक वैसी ही रही. याद हैँ बँटवारे के बाद के वे दिन जब सुबह सुबह हम सब अजमल ख़ाँ पार्क मेँ सेवा दल के अभ्यास मेँ जाते थे सर्दी हो या गरमी उस के बाद यशपाल अख़बार बाँटता था, दिन भर दफ़्तर, शाम को करौल बाग़ मेँ ही मेवा की चलती फिरती दुकान पर बैठता था

गाँधी जी जिन दिनोँ हरिजन बस्ती मेँ रहते थे. एक पूरे महीने हम करौल बाग़ वालोँ की ड्यूटी वहाँ लगाई गई थी. अंतरिम सरकार बनने की बातचीत चल रही थी. बड़े बड़े नेता लगातार आते जाते रहते. हम यह गहमागहमी दिन भर देखते. शाम को प्रार्थना सभा मेँ गाँधी जी का प्रवचन सुन कर घर लौटते.

सेवा दल मेँ मंत्री हम लोग ओम प्रकाश को ही चुनते थे. तो मैँ ने उसे मंत्री कहना शुरू किया. देखते देखते नाम ही मंत्री पड़ गया. ओम प्रकाश नाम से उसे जानने वालोँ की संख्या घटती गई

हम जितने भी मित्र थे, वे हमारे परिवारों के भी मित्र रहे हैँ, मित्र नहीँ, अभिन्न अंग. जो मित्र बना वह हमेशा हमेशा का हो गया चाहे वह किसी भी क्षेत्र मेँ, किसी भी पद पर या किसी भी राजनीतिक दल मेँ गया.

सब के सब नए से नए काम मेँ जुट जाने मेँ मुस्तैद. नई से नई जानकारी पाने को तैयारदुनिया की समकालीन स्थिति पर विचार विमर्श, नई संभावनाओँ की तलाश मंत्री कुछ थोड़ा आगे रहता था, आगे बढ़ता था. सेवा दल के जो अध्ययन कैंप लगते, उन मेँ जाता, उन से जो सीखता हम सब को बताता. ऐसे ही एक कैंप मेँ उसे संसार की प्रमुख राजनीतिक विचार धाराओँ के बारे मेँ जानकारी दी गई. वह उस ने हमेँ बड़ी उत्साह के साथ बताई, उस के गुण समझाए. वहीँ वह साम्यवाद से बहुत प्रभावित हुआ और उस का बखान जब तब करता रहता.

धीरे धीरे हम लोगोँ का (मेरा, भगवती और मंत्री का) उत्साह सेवा दल के प्रति कम हो रहा था. एक कारण था कि काँग्रेस के बड़े जलसे होँ तो सेवा दल वालोँ को बुलाओ, दरियाँ बिछवाओ, नारे लगवाओ, फिर उन्हेँ भूल जाओ. हमेँ लगता कि ये लोग हमेँ मज़दूर से ज़्यादा कुछ नहीँ समझते साथ ही रामराज्य का जो सपना गाँधी जी ने दिखाया था, वह हमारे ही नहीँ देश के मन से उतरता जा रहा था. लगता था कि आज़ादी के बाद क़ुनबापरस्ती, पक्षपात, आपाधापी, बेईमानी, रिश्वतख़ोरी बढ़ती जा रही है. हम लोग निराश थे, अपने आप को सेवा दल से काटते जा रहे थे. मन मस्तिष्क मेँ एक ख़ालीपन था.

साम्यवाद से संपर्क

उन्हीं दिनोँ मंत्री ने कम्यूनिस्ट बुद्धिजीवी और नेता प्रेमसागर गुप्ता का भाषण सुना. बेहद प्रभावित हुए. हमेँ बताया कि काँग्रेस मेँ प्रेमसागर जैसे बुद्धिजीवी, कर्मठ लोग नहीँ बचे हैँ. अब मंत्री प्रेमसागर से निजी तौर पर मिला, हमेँ मिलावायाहम सभी प्रभावित थे. प्रेमसागर जी ने ही हमेँ स्वामीनाथन (चित्रकार), नंदकिशोर नौटियाल (संपादक हिंदी ब्लिट्ज़, नूतन सवेरा) जैसों से मिलवाया बाद मेँ तो देवदत्त अटल, विमला कपूर (बाद मेँ विमला फा़रूक़ी), और यज्ञदत्त (वाईडी) शर्मा, रामकुमार वर्मा (चित्रकार), निर्मल वर्मा, बुद्धीजीवियोँ की एक पूरी सेना. कहाँ ये कुशाग्र लोग जो अपनी विचारधारा के लिए सब कुछ त्यागने को तत्पर रहते थे, और कहाँ वे काँग्रेसी जो स्वतंत्रता आंदोलन की त्याग भावना भूल कर स्वार्थ साधन मेँ लगे थे! मंत्री की पहल पर, उस के उत्साह पर, उस के कहने पर हम अब पूरे साम्यवादी बनने की राह पर चल पड़े. कई साल बाद भगवती और मैँ साम्यवाद से दूर होते चले गए, लेकिन मंत्री की आस्था अंतिम दिनोँ तक बनी रही.

जीवन की हज़ारोँ घटनाएँ हैँ, जो चलचित्र की तरह मन के परदे पर चल रही हैँ. लेकिन कम जगह मेँ वह सब बता पाना संभव नहीँ है. बस एक दो बात और

पचासादि दशक मेँ मंत्री को प्लूरिसी हो गई. बहुत ख़राब हालत थी. कामरेडोँ ने उन्हेँ आराम और चिकित्सा के लिए कश्मीर भेज दिया. वहाँ जिन कामरेडोँ से उस की मित्रता बनी, वह कई दशक चली. कश्मीर पर ही मंत्री ने पहली किताब लिखीकश्मीर और उस के लोग. कई बरस मंत्री पार्टी के हिंदी साप्ताहिक जनयुग मेँ संपादन विभाग मेँ रहा.

पंडित सुंदरलाल जैसे धुरंधर विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी से पहली मुलाक़ात मेरी हुई थी. मंत्री को मेरे हीरो पंडित सुंदर लाल से मैँ ने मिलवाया. नज़दीकी हम सब सुंदरलाल जी के पांडित्य से आतंकित थे. पर मंत्री उन के बेहद निकट हो गया. पंडित जी के ही सुझाव पर मंत्री चीन मेँ हिंदी अनुवादक बन कर चला गया. वह वहीँ पर था कि चंदौसी के समृद्ध परिवार की सुंदर और कर्मठ उषा से मंत्री का विवाह तय हो गया. रेल द्वारा दिल्ली से चंदौसी बारात मेँ मंत्री सहित हम कुल आठ लोग थे भगवती, यशपाल और मैँ तो थे ही, कुछ भाईबंदचीन से आई बारात को देखने शहर उमड़ा पड़ा आ रहा था. बहुत सारी बग्घियाँ थीँ बारात के लिए दूल्हे सहित कुल आठ बाराती देख कर घरातियोँ और शहरातियोँ को निराशा हुईवहाँ का स्वागत सम्मान हम लोग अंत तक नहीँ भूले. हम सात नौजवान कभी एक बग्घी मेँ बैठते, कभी दूसरी मेँ सभी बग्घियोँ को व्यस्त जो रखना था!

हाँ, यह भी बता दूँ, मंत्री उत्तरी कोरिया के एशियाई मैत्री संघ के महामंत्री थे. अंतरराष्ट्रीय पीस काउंसिल के लिए दुनिया भर घूमे थे पर आख़िर तक सीधे सादे वही उत्साही मंत्री रहे.

अभी दो तीन महीने पहले उन की पचासवीँ विवाह जयंती हम सब ने बड़े चाव से मनाई थी. क्या कुल इतने दिनोँ के लिए? समझ मेँ नहीँ आता उषा को कैसे ढारस बँधेगा बेटा नितिन, और बेटियाँ नीलम और शबनम उषा को सँभाल पाएँगी. यूँ उषा भी कम बलबूते की नहीँ और मानसिक शक्ति से भरपूर हैँ.

अंत मेँ मित्र, सहयोगी, साथी और कर्मठ नेता को सलाम!

आज ही http://arvindkumar.me पर लौग औन और रजिस्टर करेँ

©अरविंद कुमार

 

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