जब वी मेट या मैट?
अँगरेजी का यूसेज तेज़ी से बढ़ रहा है, लेकिन सवाल यह है अँगरेजी शब्द देवनागरी मेँ लिखेँ कैसे
जब मेरा निम्न लेख गूगल ग्रुप हिंदी विमर्श मेँ जारी हुआ, तो कई प्रतिक्रियाएँ आईँ. उन मेँ से एक पर मेरी प्रतिक्रिया पढ़िए लेख के अंत मेँ
बदलती हिंदी मेँ अँगरेजी शब्दोँ का यूसेज या प्रचलन तेज़ी से बढ़ रहा है. उन्हेँ देवनागरी मेँ सही सही लिखने मेँ कई समस्याएँ आती हैँ.
हम हर ध्वनि को वैसा ही बोलना चाहते हैँ जैसा लिखते हैँ, और जैसा बोलते हैँ वैसा ही लिखना चाहते हैँ. लेकिन रोमन लिपि मेँ लिखना पढ़ना हमारी देवनागरी जैसा नहीँ है. उस मेँ ए से ज़ैड तक कुल 26 अक्षर हैँ—और उन के ज़रिए सभी उच्चारण लिखने होते हैँ. उदाहरण के लिए ”सी” (c) को ”स” बोलना है या ”क”, यह दर्शाने के लिए ”सी” के बाद कई भिन्न स्वर या वर्ण लगाने की प्रथा बनाई गई है. मोटे तौर पर
”सी” के बाद ”आई” (i) है या ”ई” (e) या ”सी” के पहले या ”ऐस” (s) है तो उच्चारण है ”स”,
”सी” के बाद मेँ ”ए” (a), ”यू” (u) है या ”ओ” (o) हो तो बोलते हैँ ”क”.
इसलिए अँगरेजोँ को भी अँगरेजी हिज्जे रटने पड़ते हैँ.
अँगरेजी मेँ स्वरोँ की संख्या तो कुल पाँच है, लेकिन हमारे 10 स्वर उच्चारणोँ की जगह (अँ अः को नहीँ गिना गया है, न ही ऋ ऋ़ लृ को) अँगरेजी मेँ कम से कम 14 हैँ. स्पष्ट है कि देवनागरी के पुराने स्वरोँ और मात्राओं के सहारे वे नहीँ लिखे जा सकते. उन के लिए हमेँ अपने नियम बदलने पड़ेंगे, या नए अक्षर गढ़ने पड़ेंगे, जैसे आ और औ के बीच मेँ ऑ. सवाल उठता है कि उन्हेँ कोश क्रम मेँ कहाँ रखा जाएगा? कोई भी यूज़र कैसे समझेगा कि उसे आ देखना है, ओ, या फिर औ, याऑ.
यूरोप की भाषाओं मेँ लिपि तो वही रोमन है, लेकिन अक्षरोँ का उच्चारण अलग है. दूसरे देशोँ के यूरोपियनोँ को या तो अँगरेजी उच्चारण सीखना होता है या हिज्जे. अनेक देवनागरी उच्चारण कई यूरोपीय देशोँ मेँ हैँ ही नहीँ. अँगरेज या फ़्राँसीसी ”खादी” को ”कादी” बोलते हैँ.
विदेशी नामोँ की बात तो दूर, रोमन मेँ लिखे अपने भारतीय शब्द भी हम अपनी भाषाओं मेँ सही नहीँ लिख पाते. मेरे जन्म स्थान ”मेरठ Meerut” को मराठी मेँ ”मीरुत” लिखा जाता है. बाँगला Saurav का सही उच्चारण है ”सौरभ” क्योंकि वहाँ ”व” का उच्चरण ”ब” या ”भ” है, लेकिन हिंदी मेँ उसे ”सौरव” लिखने की प्रवृत्ति है. आम तौर पर हृषिकेश या हृतिक को हिंदी वाले ऋषिकेश या ऋतिक लिखते हैँ. उड़िया ”शात्कड़ी Satkari” को हिंदी मेँ लोग ”सत्कारी” बोलते लिखते हैँ.
सेंटर सैंटर… टेस्ट टैस्ट… वेस्ट वैस्ट…
आज हिंदी मेँ हर ओर विदेशी शब्दोँ और नामोँ की रेज़ है. अँगरेजी मेँ कहेँ तो rage रेज है. देवनागरी मेँ उन के हिज्जे कई बार भ्रामक हो जाते हैँ. मैँ कुछ वे शब्द ले रहा हूँ जिन मेँ ए या ऐ उच्चारणोँ का घपला है. जैसे पीएमओ (प्रधान मंत्री कार्यालय)… होना चाहिए पीऐमओ. इस के सैकड़ोँ उदाहरण पता नहीँ कब से हिंदी पत्रपत्रिकाओं मेँ मिलते रहे हैँ…
बात शुरू होती है रोमन लिपि के f, h, l, m, n, x अक्षरोँ के उच्चारणोँ की हमारी लिखावट से. हम लिखते हैँ– एफ़, एच, एल, एम, एन, एक्स… जो सही है और जो होना चाहिए वह है ऐफ़, ऐच, ऐल, ऐम, ऐन, ऐक्स.
कई बार भयंकर परिणाम होता है, जैसे…
फ़िल्म जब वी मेट के नाम मेँ. हिंदी मेँ नाम लिखने वाला कहना चाहता था जब नायक नायिका मिले यानी जब वी मैट. लेकिन जो उस ने लिखा उस का मतलब होता है जब नायक और नायिका ने परस्पर शारीरिक संबंध स्थापित किया.
कुछ अन्य उदाहरण…
taste टेस्ट, test टेस्ट (होना चाहिए टैस्ट), match (लिखते हैँ मेच होना चाहिए मैच). अगर यह लिखते रहना है तो यह वाक्य कैसे लगेँगे? फ़ूड के टेस्ट का असली टेस्ट तो खाने मेँ है. टेस्ट मेच को देखने का पूरा टेस्ट को स्टेडियम मेँ ही आता है.
rate रेट, rat रेट. यदि rat (चूहा) है तो भी लिखते हैँ रेट, (होना चाहिए रैट), rattle (झुनझुना) रेटल (चाहिए रैटल), mate मेट, met मेट (होना चाहिए मैट) की बात तो ऊपर हो ही चुकी है. metro को लिखते हैँ मेट्रो (होना चाहिए मैट्रो), sale सेल, sell सेल (होना चाहिए सैल).
इसी तर्ज़ पर हाल ही मैँ ने एक सुप्रसिद्ध हिंदी दैनिक मेँ पढ़ा– बेस्ट सेलर. हँसी भी आई और दया भी– बैस्ट सैलर (बहुत बिकने वाली पुस्तक) का कैसा विद्रूप!
लीजिए और भी उदाहरण…
bale को भी बेल, bell को भी बेल (होना चाहिए बैल), hale को हेल, hell को भी हेल (होना चाहिए हैल), health को हेल्थ (होना चाहिए हैल्थ), help को हेल्प (होना चाहिए हैल्प), इसी तर्ज़ पर help line हेल्प लाइन (होना चाहिए हैल्प लाइन), take को टेक, tech को भी टेक (होना चाहिए टैक), इसी तरह hitech हाइटेक (सही होता है हाईटैक).
कुछ अन्य सही उच्चारण जो होने चाहिएँ, पर होते नहीँ… democracy डैमोक्रेसी, leather लैदर, metal मैटल, mettalic मैटलिक, centre सैंटर… cattle कैटल…
सवाल है कब तक?
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नायक नायिका… और आगे…
लेख पढ़ने के बाद एक सदस्य श्री विनय के प्रश्न के उत्तर मेँ मैँ ने लिखा:
हिंदी का उच्चारण पिछले दशकों मेँ, कहेँ तो पिछली सदी मेँ, तेज़ी से बदला है. वह संस्कृत के प्रभाव से भिन्न होता जा रहा है. संस्कृत मेँ ए ऐ ओ औ संयुक्त ध्वनियाँ थीं. वहाँ दो स्वतंत्र स्वरोँ को लिखने कि आज़ादी नहीँ थी. अ और इ होँ तो ए ही लिखना होता था, अ और ई होँ तो ऐ. अब हम लोग ए और ऐ को स्वतंत्र स्वर मानने लगे हैँ जो अँगरेजी के मेट और मैट वाले ही हैँ. यही बात ओ और औ के बारे मेँ है. मराठी और हिंदी मेँ इन अँगरेजी स्वरोँ के लिए नए चिह्न तो बना लिए गए हैँ, लेकिन कोश मेँ उन का क्रम क्या होगा–यह कहीँ तय नहीँ है.
मैँ इस समस्या को लेखन और कोश की समस्या के तौर पर मिला कर देखता हूँ. नए स्वरोँ को लिखना और टाइप करना तो एक नई समस्या है ही (हम पाठ्य क्रम मेँ इन के बारे मेँ नहीँ सिखाते. पाठ्य क्रम मेँ हम क़ ख़ आदि के बारे मेँ, ड़ और ढ़ के बारे मेँ नहीँ बताते. वहाँ तो हम बारह खड़ी सिखाते हैँ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः. लेकिन कोशक्रम मेँ बारह खड़ी होती है अं अः अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ… इसी तरह क्ष त्र ज्ञ सब से अंत मेँ बताए जाते हैँ. बच्चे समझते हैँ कि ये तीन अक्षर ह के बाद मेँ आते होँगे. जब बच्चा कोश देखता है तो समझ नहीँ पाता कि मैँ कौन सा शब्द कहाँ खोजूँ. अब हम अइ अई अउ अऊ लिख सकते हैँ, लिखते हैँ. सुअवसर शब्द संस्कृत मेँ हो ही नहीँ सकता. वहाँ होता स्ववसर. ये सब देखते हुए, यह बात स्वीकार करते हुए कि सारे संसार तो क्या, सारे भारत की सभी ध्वनियाँ हमारी देवनागरी मेँ नहीँ समोई जा सकतीं, हमेँ प्रचलित स्वरोँ के ज़रिए निकटतम राह अपनानी चाहिए. आप स्वयं देखिए–आज हिंदी मेँ क्या हो रहा है? मेट मैट टेस्ट टैस्ट मेच मैच आदि के हिज्जे एक से ही लिखे जा रहे हैँ. देखिए– टेस्ट मेच देखने का असली टेस्ट तो मैदान मेँ ही आता है… जब वी मेट तो आप देख ही चुके हैँ…(अरविंद)
आज ही http://arvindkumar.me पर लौग औन और रजिस्टर करेँ
©अरविंद कुमार
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