स्ट्रैटोस्फ़ियर को ओज़ोन आवरण, ओज़ोन पट्टी, आदि नामोँ से जाना जाता है. यह 84.5ओज़ोन गैस (ozone—यानी बहुप्राणाति, बहुविध आक्सीजन) से बना है. ओजो़न परत धरती को सूर्य तथा अन्य अंतरिक्षीयी स्रोतोँ से लगातार होने वानी ख़तरनाक़ पराबैंगनी ultraviolet किरणों की बौछार से बचाती है.
परत |
आरंभ |
अंत |
ऐक्सोस्फ़ियर |
640 किमी |
9,600 किमी |
थर्मोस्फ़ियर – आयन मंडल |
80 किमी |
640 किमी |
मैसोस्फ़ीअर |
50 किमी |
80 किमी |
स्ट्रैटोस्फ़ियर |
6 किमी |
50 किमी |
औज़ोन परत |
9 किमी |
48 किमी |
ट्रोपोस्फियर |
0 किमी |
6 किमी |
वायुमंडल की परतें मानचित्र
दक्षिण ध्रुव सागर के ऊपर ओज़ोन परत मेँ छेद हो गया है, जो बढ़ता जा रहा है.
आज जब हम पर्यावरण पर गहराते संकट की बात करते हैँ, तो सब से पहले इस ओज़ोन पट्टी के कहीँ कहीँ हलका पड़ जाने और कहीँ कहीँ इस मेँ छेद हो जाने से मतलब होता है. मान्यता है कि जिस तेज़ी से हम लोग ऊर्जा का, ख़ासकर पैट्रोल आदि का उपयोग कर रहे हैँ, या कारख़ानोँ मेँ कोयला जला रहे हैँ, या कोयला जला कर बिजली पैदा कर रहे हैँ, उस से जो ताप पैदा होता है और ख़तरनाक़ गैसेँ बनती है, उन से इस परत को भारी ख़तरा पैदा हो गया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि बड़ी तेज़ी से हम उस सीमा को पार कर लेँगे जब ओज़ोन परत को बचाया नहीँ जा सकेगा. फिर क्या होगा? सूर्य से और अंतरिक्ष से आने वाली घातक किरणों को रोकने वाला यह कवच नष्ट हो जाएगा. धऱती पर जीवन बचना असंभव हो जाएगा.
यही कारण है पूरा संसार समाज धरती को इस संकट से बचाने के वैज्ञानिक उपायोँ की खोज करने मेँ समय और धन लगा रहा है…
© अरविंद कुमार
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