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वर्षा बूँदोँ की नहीँ, उल्काओँ की

In Astronomy, Learning, Science by Arvind KumarLeave a Comment

वातावरण मेँ घुसने पर लगभग 60 मील या 00 किलोमीटर की ऊँचाई पर उल्काएँ घर्षण से जल उठती हैँ. हमेँ दिखाई देती है बस इन की कौँध.

उल्काएँ क्या हैँ? ये स्पेस या अंतरिक्ष मेँ मिलने वाले पाषाण या उन की धूल होती हैँ जो धरती के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र मेँ फँस जाती हैँ और तीव्र गति से पृथ्वी की ओर गिरने लगती हैँ. आम तौर पर यह खगोलीय धुँध पुच्छल तारोँ की पूँछ से निकलती है. वातावरण मेँ घुसने पर लगभग 60 मील या 00 किलोमीटर की ऊँचाई पर उल्काएँ घर्षण से जल उठती हैँ. हमेँ दिखाई देती है बस इन की कौँध. उल्का को हिंदी मेँ कहते हैँ टूटता तारा और इंग्लिश मेँ शूटिंग स्टार. पश्चिम मेँ शूटिंग स्टार को देख कर मन्नत मानने का प्रचलन है. यह अब आइडिया भारतीय फ़िल्मों मेँ भी लिया जाने लगा है. टीवी सीरियलों मेँ भी यह देखा जाता है.

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कभी कभी एक साथ बहुत सारी उल्काएँ बरसती लगती हैँ. बरसात मेँ पानी की बूँदोँ की तरह झमाझम नहीँ चमाचम. ऐसी बरसातों के कुछ उदाहरण हैँ 833 और 966 के. तब दसियोँ हज़ार उल्काएँ आसमान मेँ एक साथ नज़र आती थीं. 999, 200, और 2002 मेँ कुछ हज़ार उल्काएँ ही दिखाई दी थीं. ऐसे दृश्य कभी कभी और कहीँ कहीँ ही देखने का मिलते हैँ.

© अरविंद कुमार

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