इस का पता कैसे चलता है?
ब्लैक होल या काल नक्षत्र है क्या जिसे ले कर इतनी सारी रोमांचक विज्ञान कथाएँ लिखी गईँ और कमाऊ फ़िल्मों ने दुनिया भर मेँ डालर समेटे? इस के बारे मेँ यहाँ तक कहा गया कि यह स्पेस मेँ ऐसा भँवर गर्त है जिस मेँ फँस कर हम नीचे से किसी अन्य सृष्टि मेँ पहुँच सकते हैँ.
जब कोई महाकाय तारा यानी सूर्य मरता है तो अपने भीतर की ओर ढह पड़ता है. ढहते ढहते यह इतना सिकुड़ जाता है और इतना भारी हो जाता है कि सब कुछ अपने भीतर समेटने लगता है. इस की ओर जाती गैस तपने लगती है और ऐक्स किरण छोड़ने लगती है. बस इसी से विज्ञानियोँ ने ब्लैक होल के होने का अनुमान लगाया है. अभी तक उपलब्ध किसी थियरी या सिद्धांत से इसे पूरी तरह समझना असंभव रहा है. (एक अतिरिक्त सूचना ब्लैक होल का नामकरण विज्ञानी जान व्हीलर ने किया था.)
ब्लैक होल के अंदर देखना भी असंभव है. कारण कि यह इतना गहन सघन पिंड है जिस का गुरुत्व आकर्षण प्रकाश ही नहीँ, किसी भी तरह की किरण को बाहर नहीँ आने देता. हम इस के अंतर्तम के बारे मेँ कुछ जान ही नहीँ सकते!
कलाकारोँ ने अपनी कल्पना से ब्लैक होल के कुछ चित्र बनाए हैँ. देखिए—
महानोवा विस्फोट के काल्पनिक चित्र
सिद्धांत यह बनाया गया कि लीलने कि इस प्रक्रिया से ब्लैक होल के आसपास एक घटना क्षितिज event horizon का निर्माण हो जाता है. नीचे निर्मित चित्र दरशा रहा है निकटस्थ सूर्य को निगलते ब्लैक होल के आसपास बना क्षितिज—
जहाँ प्रकाश भी बंदी हो जाएगा
आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत (थियरी आफ़ रिलेटिविटी) के अनुसार प्रकाश भी ऐसे क्षितिज मेँ फँसा रहेगा और किसी भी तरह की जानकारी का बाहर बच निकलने नहीँ देगा. परंतु लगता है सूचना तो मिल ही रही है. यहाँ आती है क्वांतम भौतिकी (क्वांटम फ़िज़क्स) जिस का कहना है कि सूचना हमेशा सुरक्षित रहती है. इसी के आधार पर नवीनतम आकलन कहते हैँ कि ढहता पदार्थ कभी इतना घना नहीँ हो सकता कि इस से कुछ भी बाहर
न आ सके. परिणामतः ऐसा कोई क्षितिज नहीँ बनेगा. बस, वह एक काला नक्षत्र मात्र बना कर रह जाएगा. ये सब बातें इतनी गहन हैँ कि संक्षेप मेँ नहीँ कही जा सकतीं.
एक बात पक्के तौर पर कही जा सकती हैः गणित ज्योतिष नई जानकारी के आधार पर मान्यताओं को बदलने या त्यागने को तैयार रहता है. (इस का एक उदाहरण इसी अंक मेँ मिलेगा कि किस खुलेपन से हाकिंग ने अपने पुराने सिद्धांत को त्याग कर नए डाटा से प्राप्त जानकारी के आधार पर अपना मत बदल लिया.) फलित ज्योतिष ऐसा कभी नहीँ करता. भाग्य बताने वाले ज्यतिषी अभी तक उन्हीं पुराने नवग्रहोँ मेँ अटके हैँ, जब कि सदियोँ पहले सिद्ध हो चका है कि सूर्य तारा है और चंद्रमा उपग्रह, राहु केतु ग्रहोँ उपग्रहोँ के चलने से उत्पन्न छाया मात्र हैँ. यह भी अब सर्वज्ञात और सर्वमान्य है कि इन ग्रहोँ की स्थितियाँ वही नहीँ हैँ जो सदियोँ पहले निर्धारित की गई थीं.
© अरविंद कुमार
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