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कोटणीस-चिंगलान का संगम एक बार फिर हिंद-चीन का संगम बन सकता है

In Adventure, Cinema, Culture, History, India-China, Memoirs, People by Arvind KumarLeave a Comment

अपने प्यारे ‘के दिहुआ’ की समाधि पर चीन के लोग अभी तक फूल चढ़ाते हैं. वह था महाराष्ट्र के शोलापुर मेँ जन्मा हमारा डाक्टर कोटणीस जिस के जीवन पर वी. शांताराम ने सन 1946 मेँ बनाई थी यादगार फ़िल्म ‘डाक्टर कोटणीस की अमर कहानी’.

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डाक्टर द्वारकानाथ शांताराम कोटणीस का जन्म शोलापुर मेँ 10 अक्तूबर 1910 मेँ हुआ था. डाक्टरी की पढ़ाई बंबई के जी.एस. मैडिकल कालिज में हुई. ज़माना आज़ादी की लड़ाई की आँधी का था. जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस युवाहृदय सम्राट थे. 1938 मेँ जापान ने चीन पर हमला किया. कमज़ोर चीन को सहायता की ज़रूरत थी. चीन के नेता जनरल झु दे (Zhu De) ने पंडित नेहरू से भारतीय चिकित्सक दल भेजने की अपील की. सुभाष बोस ने समर्थन किया. बंबई के आज़ाद मैदान से गुज़रते द्वारका ने एक नेता का प्रेरक भाषण सुना. वह आज़ादी की लड़ाई लड़ते चीन की सहायता के लिए डाक्टरोँ को पुकार रहे थे. उत्साही द्वारकानाथ ने तत्काल अपना नाम लिखा दिया.

सितंबर 1938 मेँ जो टीम चीन गई उस के नेता थे इलाहाबाद के डाक्टर एम. अटल, अन्य सदस्य थे नागपुर के एम. चोलकर, कलकत्ता के बी.के. बसु और देवेश मुखर्जी, तथा शोलापुर के डाक्टर द्वारकानाथ शांताराम कोटणीस. चीन के बंदरगाह हैंकाऊ से चल कर ये लोग यनान भेजे गए जो तत्कालीन क्रांतिकारियोँ का अड्डा था. स्वयं माओ जेदुंग ने विदेश से आई पहली चिकित्सक मंडली का हार्दिक स्वागत किया.

गए थे पाँच, एक नहीँ लौटा. वह था कोटणीस. पहले उसे सेना के पड़ाव यनान में नियुक्त किया गया. कुछ समय बाद वह जापान के विरुद्ध मोर्चे पर उत्तरी चीन भेजा गया. युद्ध क्षेत्र मेँ जो तमाम संकट होते हैँ, उनके बीच डाक्टरी का काम बेहद तनावपूर्ण था. सन 1940 मेँ एक बार तो वह जापानी हमले मेँ घायल 800 (आठ सौ) चीनी सैनिकोँ के आपरेशन मेँ लगातार बहत्तर घंटे जुटा रहा था. यह थी उसकी कार्यनिष्ठा और सेवा भावना. अब उसे यनान के बेथून इंटरनेशल शांति अस्पताल का पहला निदेशक बना दिया गया. कोटणीस अब तक चीनी भाषा फर्राटे से बोलने लगे था.

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चीन के शिजिआझुआङ के हेबेई मेँ डाक्टर कोटणीस की मूर्ति.

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भारत डाक विभाग ने ज़ारी किया कोटणीस की टिकट

डाक्टर नार्मन बेथून की समाधि के उद्घाटन पर नर्स चिंगलान की कोटणीस से पहली मुलाक़ात हुई. दोनों मेँ प्यार हुआ. दिसंबर 1941 मेँ दोनोँ ने शादी कर ली. 23 अगस्त 1942 को दोनोँ का बेटा हुआ. नाम रखा गया – यिनहुआ (‘यिन’ माने ‘हिंद’ और ‘हुआ’ माने ‘चीन’ – ‘हिंदचीन’). पुत्रजन्म के तीन महीने गुज़रते गुज़रते वह अग्र चौकी पर डाक्टरी के तनावोँ से गंभीर रूप से मिरगी ​का शिकार हो गया. बीमारी मेँ उसने घायल जनरल झू के शरीर से तीन गोलियाँ निकालीँ और फिर मिरगी का एक और दौरा पड़ गया. (शांताराम ने अपनी फ़िल्म मेँ इस दृश्य का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है.) 9 दिसंबर 1942. एक साथ मिरगी के कई दौरोँ के बीच डाक्टर कोटणीस का देहांत हो गया.

माओ झेदुंग ने श्रद्धांजलि दी – “सेना ने खोया एक कुशल सहायक, देश ने खोया एक दोस्त. हम सब को याद रहेगी उसकी अंतरराष्ट्रीय भावना.”

1911 की चीनी क्रांति की नेता मैडम सुन यात-सेन ने कहा: “उनकी याद न केवल उनके और हमारे देश के लोगोँ की, बल्कि उन सभी योद्धाओँ की थाती रहेगी जो मानव मात्र की आज़ादी और प्रगति के संघर्ष मेँ सन्नद्ध हैँ. वर्तमान के मुक़ाबले भविष्य उन का सम्मान और भी अधिक करेगा क्योँकि उनकी लड़ाई भविष्य की सुरक्षा के लिए थी.”

उस की याद मेँ उपकृत चीनी सरकार ने संस्मारक हाल बनाया, डाक टिकट ज़ारी किया और शीजिआझुआङ (Shijiazhuang) अस्पताल का दक्षिणी भाग डाक्टर बेथून और कोटणीस को संयुक्त रूप से समर्पित कर दिया है. चीनी संवत् के अनुसार 4 या 5 अप्रैल को वहाँ पुरखोँ की याद मेँ चिंगमिंग उत्सव के अवसर पर अब तक दोनोँ की समाधियाँ फूलोँ से मंडित की जाती हैँ.

कोटणीस-चिंगलान का चौबीस-वर्षीय बेटा यिनहुआ डाक्टरी की पढ़ाई के अंतिम साल जाता रहा. चिंगलान उसे ले कर भारत आई थी, कुछ माह बाद लौट गई. वहाँ उसने एक चीनी से शादी कर ली, जिस से उसे एक बेटा और बेटी हुई. लेकिन भारत-चीन के बीच कई उच्चस्तरीय राजनयिक अवसरोँ पर वह सम्मानित अतिथि के रूप मेँ बुलाई जाती रही. हमारे राष्ट्रपति के. आर. नारायणन (सन 2000) और प्रधान मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी (2003) की बीजिंग यात्राओँ पर भी वह उपस्थित थी. सन 2012 मेँ 96 वर्ष की अवस्था मेँ विलीन हो गई. दोनोँ देशोँ मेँ उन पर डाक टिकट ज़ारी किए हैँ. सन 2006 मेँ वह चीनी राष्ट्रपति हू जिन ताओ के साथ भारत आई. चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जब सन 2014 मेँ भारत आए तो कोटणीस की छोटी बहन मनोरमा से मिलना नहीँ भूले.

कोटणीस-चिंगलिन पर शांताराम की लगभग साल पहले 1946 की फ़िल्म ‘डाक्टर कोटणीस की अमर कहानी’ का ज़िक्र मैँ पहले ही कर चुका हूँ. पैंतीस साल पहले सन 1982 मेँ उन की कहानी पर चीनी भाषा मेँ फ़िल्म बनी – ‘के दि हुआ दाइ फू’ (डाक्टर डी.एस. कोटनिस) बनी.

समय है कि दोनोँ देशोँ के सहयोग से आधुनिक तकनीक और बिल्कुल नई पटकथा के साथ फ़िल्म बनाई जाए. बिना कुछ कहे हम चीन की युवा पीढ़ी को जता पाएँगे कि चीन के संकट काल मेँ भारत हमेशा काम आता रहा है, साथ ही हम अपने नौजवानोँ के सामने एक उच्च आदर्शवादी भारतवासी का उदाहरण पेश कर पाएँगे. सुझाव है कि इसमेँ हमारे ‘फ़िल्म वित्त निगम’ और वहाँ के ‘चीन फ़िल्म ग्रुप कारपोरेशन’ के स्तर पर बातचीत शुरू करवाई जाए.

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डाक्टर कोटणीस की छोटी बहन मनोरमा के साथ राष्ट्रपति शी

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