जूलियस सीज़र. अंक 1. दृश्य 1. रोम एक मार्ग

In Culture, Drama, History, Poetry, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

उल्‍लास क्योँ? आनंद क्योँ? किस की

विजय? किस पर विजय? कैसी विजय?

रोम. एक मार्ग.

(फ़्‍लावियस और मारूलस आते हैँ. कुछ नगरजन आते हैँ.)

फ़्‍लावियस

जाओ! आज छुट्टी है क्‍या? कर्मकार हो

तुम. नहीँ जानते तुम – अनुचित है

काम के दिन निकलना यूँ कर्म

चिह्नोँ से हीन?… बोल, कौन है तू?

बढ़ई

बढ़ई हूँ, जी.

मारूलस

कहाँ है तेरा रंदा, नपैना?

क्योँ निकला हैँ योँ सजधज कर?… और तू?

क्‍या है तेरा काम?

मोची

अजी, मेरा भी क्‍या काम! कहाँ ये गुणी कर्मकार, कहाँ मैँ कोरा चर्मकार!

मारूलस

सीधे मुँह बता – क्‍या है तेरा काम?

मोची

मेरा काम, श्रीमान? बड़ा ही भला है मेरा कामबुरे से बुरे को कर देना तले तक ठीक.

मारूलस

क्‍या है तेरा काम? पाजी, बता क्‍या

है तेरा धंधा?

मोची

, , यूँ मत फटिए, श्रीमान! ख़ैर, फट ही गए तो क्‍या है? ठीक कर दूँगा.

मारूलस

यह हिम्‍मत! ठीक कर देगा, पाजी!

बदमाश!

मोची

जी, फट गया तला तो मैँ ही तो गाँठूँगा!

फ़्‍लावियस

मोची है तू?

मोची

जी, हाँ, श्रीमान. सूजा है मेरा धंधा. नहीँ है मुझे किसी और के धंधे से काम. मुझे तो बस काम है सूजे से. श्रीमान, शल्‍यक हूँ मैँ पुराने जूतोँ का. जब भी पड़ती है संकट मेँ उन की जान, मैँ ही आता हूँ काम. बड़े से बड़ोँ के चरणोँ की शोभा हैँ जो, मेरे ही हाथोँ का कौशल हैँ वे.

फ़्‍लावियस

तो क्योँ नहीँ सी रहा जूते?

भटका रहा है लोगोँ को क्योँ?

मोची

श्रीमान, मैँ निकला हूँ जूते घिसवाने? घिसेँगे जूते तो मुझे मिलेँगे दाम! सच कहूँ तो आज हम निकले हैँ सीज़र का स्‍वागत करने, विजय का उल्‍लास मनाने.

मारूलस

उल्‍लास क्योँ? आनंद क्योँ? किस की

विजय? किस पर विजय? कैसी विजय?

कौन सा धन जीत कर लाया है वह? है

कौन जो बंदी बना? रथ कौन उस का

खीँचता? बोलो! चुप क्योँ हो? पत्‍थर हो

तुम, पाषाण हो. तुम भावना से हीन हो.

क्‍या भूल गए तुम – बीते अच्‍छे दिन?

बच्चोँ को गोदी मेँ ले कर चढ़ना

वह भवनोँ पर,

दीवारोँ पर…

भूल गए – वह रुकना पूरे पूरे दिन,

वह इंतज़ार…

कब आएगा अपना प्रिय नायक

पोंपेई? कब शोभित होगा उस से

यह रोम नगर का राजमार्ग?

देखा जो उस का विजय यान –

वह आकाश उठा लेना सिर पर.

क्‍या भूल गए वह गुंजन, अनुगुंजन

उन नारोँ का जिन से थर थर कंपित

कर देते थे तुम गहरी टाइबर

का शांत सलिल. अब तुम फिर से सज धज

कर निकले हो? इस सीज़र का स्‍वागत

करते हो! कर डाले सारे काम बंद.

पुष्पोँ से भर डाला राजमार्ग…

जाओ. घर जाओ. देवोँ से माँगो

क्षमा दान. बरसेगा तुम पर कोप प्रबल.

होगा धरती पर वज्रपात.

फ़्‍लावियस

जाओ, जाओ. भाई, जाओ. एकत्र करो

सब कामगार. टाइबर तट पर सब के सब

रोओ मिल कर. रोओ इतना… इतना

रोओ… आँसू से ऊपर तक चढ़

आए जल की धारा…

(सब नगरजन जाते हैँ.)

   देखा तुम ने?

कैसे सब चले गए. हैँ सब के सब कितने

लज्‍जित! हैँ कैसे पश्‍चात्ताप भरे.

तुम इधर दुर्ग की ओर चलो. इस

ओर चला जाता हूँ मैँ. छीनेँ

प्रतिमाओँ से हम विजय चीर.

मारूलस

यह सब करना ठीक रहेगा क्‍या? है आज

नगर मेँ लूपरकल. है आज बसंत

आगमन का उत्‍सव.

फ़्‍लावियस

उत्‍सव है तो

होने दो. बस, यह देखो सीज़र का

स्‍वागत चिह्‍न न कोई बच पाए.

लोगोँ से ख़ाली कर दूँगा मैँ सब

सड़केँ. भीड़ जहाँ भी तुम देखो –

दो भाषण. नोँचो सीज़र के पंख.

हम भी देखेँ. कैसे – वह उड़ता है

ऊपर नभ मेँ! कैसे करता है हम

को वह पराधीन.

(जाते हैँ.)

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