- फ़ाउस्ट : प्रस्तुति -

In Culture, Drama, History, People, Spiritual, Translation by Arvind KumarLeave a Comment

 

 

 


महाकवि योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे कृत

जरमन काव्य नाटक

फ़ाउस्ट – एक त्रासदी

अविकल हिंदी काव्यानुवाद

भाग 1 – प्रस्तुति

अरविंद कुमार

इंटरनैट पर प्रकाशक

अरविंद लिंग्विस्टिक्स प्रा लि

ई-28 पहली मंज़िल, कालिंदी कालोनी

नई दिल्ली 110065


© अरविंद कुमार – सर्वाधिकार सुरक्षित

 

स्वत्वाधिकारियोँ की पूर्वलिखित अनुमति के बग़ैर फ़ाउस्टएक त्रासदी हिंदी काव्य अनुवाद का पूर्णतः या अंशतः, संक्षिप्त या परिवर्धित रूप मेँ, किसी भी प्रकार का और किसी भी वर्तमान और भावी विधि या तकनीक से, पुनरुत्‍पादन, पुनर्मुद्रण और रूपांतरण पूरी तरह वर्जित है. इस के संक्षिप्त अंश समीक्षाओँ मेँ उद्धृत मात्र किए जा सकते हैँ.

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मंचन, फ़िल्मांकन, टेलिविज़न पर प्रदर्शन के लिए लिखेँ -

अरविंद कुमार

सी-१८, चंद्र नगर, ग़ाज़ियाबाद २०१०१

 

 

 


प्रस्तुति

प्रस्तुत है—जरमन महाकवि योहान लुडविग फ़ौन गोएथे (Johann Wolfgang von Goethe) के महान नाटक फ़ाउस्ट – आइन ट्राजेडी (Faust – Ein Tragedy) का अविकल हिंदी काव्यानुवाद.

 

सब से पहले आप सब से क्षमा याचना.

मैँ जरमन भाषा नहीँ जानता…

तो– मुझे इस नाटक का अनुवाद करने का क्या अधिकार था? जवाब मेँ मेरे पास कहने को बस इतना ही है कि मुझे यह महान रचना इतनी प्रिय है कि पिछले चालीस पैँतालीस सालोँ से यह मेरे मन के तारोँ को इस तरह झंकारती रही है कि मैँ इस के भावोँ को अपनी भाषा मेँ उतारने की कोशिश किए बिना न रह सका.

 

अपने बचाव मेँ मैँ ऐसे अनेक उदाहरण दे सकता हूँ जहाँ हिंदी मेँ, हिंदी मेँ ही क्योँ, लगभग सभी भारतीय भाषाओँ मेँ, अभी बीती सदी मेँ अँगरेजी इतर विदेशी भाषाओँ के अनुवाद अँगरेजी के माध्यम से हुए हैँ. विदेशी भाषाएँ ही क्योँ, हमारे यहाँ तो भारतीय भाषाओँ की अनेक कृतियाँ, चाहे वे कन्नड़ की होँ, मलयालम की, तमिल की, बांग्‍ला की, उड़िया की, अँगरेजी के माध्यम से हिंदी पाठक तक पहुँची हैँ, और अब भी कई इसी रास्‍ते से पहुँचती हैँ.

इस के कारण ऐतिहासिक हैँ. ये कारण पैदा हुए १९वीँ सदी मेँ, जब अँगरेजी सारे भारत मेँ शिक्षा का माध्यम बन गई, और हमारी संपर्क भाषा – न केवल विश्व से, बल्‍कि पूरे भारत से.

अब हालत दो परस्पर विरोधी दिशाओँ मेँ बदल रही है. १) पहले विश्व मेँ कई संपर्क भाषाएँ हुआ करती थीँ, जैसे फ्राँसीसी, जरमन और डच. अब धीरे धीरे इन की जगह अँगरेजी लेती जा रही है. २) विश्व की अन्य प्रमुख भाषाएँ (जैसे, जरमन, इटालियन, फ्राँसीसी, रूसी, अरबी, जापानी, चीनी) अब हमारे कई विश्वविद्यालयोँ मेँ सिखाई जाने लगी हैँ. अनेक विदेशी भाषाओँ के हिंदी कोश भी बनने लगे हैँ. इस के साथ साथ हर भारतीय भाषा के अनेक लोग अपनी भाषा के साथ साथ भारत की अन्य भाषाएँ भी सीख रहे हैँ. फिर भी अभी वह आदर्श स्थिति नहीँ पहुँची है कि उन भाषाओँ को जानने वाले लोग साहित्यिक रुचि के होँ और अपनी मनपसंद रचनाओँ के हिंदी अनुवाद करने की ललक उन के मन मेँ जगे. जब तक ऐसा नहीँ होता, मुझ जैसे लोग अँगरेजी की शरण ले कर अहिंदी साहित्य को हिंदी मेँ लाने की कोशिशेँ करते रहेँगे.

फ़ाउस्ट कथा – किंवदंतियाँ और सत्य

सुभागे या अभागे फ़ाउस्ट की कहानी से मेरा परिचय १९५४-५५ मेँ तब हुआ, जब मैँ अँगरेजी साहित्य मेँ ऐम.ए. का विद्यार्थी था. उन दिनोँ मैँ दिल्‍ली मेँ सरिता-कैरेवान पत्रिकाओँ के संपादन विभाग मेँ काम करता था, और शाम के समय बी.ए., ऐम.ए. की पढ़ाई करता था.

मुझे विलियम शैक्‍सपीयर (William Shakespeare – 1564-1616) के साथ साथ उन के समकालीनोँ मेँ विशेष रुचि थी. इन समकालीनोँ मेँ मुझे बहुत प्रिय थे क्रिस्‍टोफ़र मारलो  (Christopher Marlowe – 1564-93). यह विवाद भी कम रहस्यपूर्ण, रोमांचक और रोचक नहीँ था कि क्या मारलो अपनी तथाकथित मृत्यु के समय सचमुच मर गए थे या छद्म रूप से जीवित रह कर शैक्‍सपीयर के नाम से नाटक लिखते रहे थे. यह मारलो ही था जिस ने अपने नाटकोँ (टैमरलेन द ग्रेट Tamburlaine the Greatलगभग १५८७, डाक्टर फ़ाउस्टस Doctor Faustusलगभग १५८९, ज्‍यू आफ़ माल्‍टा The Jew of Maltaलगभग १५८९, और ऐडवर्ड सैकंड Edward II - लगभग १५९२) के संवादोँ मेँ अतुकांत आयंबिक पैंटामीटर (iambic pentametre) छंद का उपयोग कर के शैक्‍सपीयर के नाटकोँ के लिए छंद और शैली की आधारभूमि तैयार की. १५९३ मेँ मारलो की तथाकथित मृत्यु के लगभग तत्काल बाद १५९४ मेँ लंदन के रंगमंच पर शैक्‍सपीयर का आविर्भाव और दोनोँ की शैलियोँ मेँ साम्‍य ही इस विवाद के आधार हैँ. कितनी ही बार शैक्‍सपीयर के सचमुच शैक्‍सपीयर होने के पक्ष मेँ सुलझ जाने के बाद भी यह विवाद बार बार उठता रहेगा.

मारलो का नाटक डाक्टर फ़ाउस्टस मुझे बहुत अच्छा लगता था. यह नाटक फ़ाउस्ट की मूल कथा के काफ़ी निकट होने का बावजूद उस मेँ कुछ नए तत्व जोड़ कर उसे नई उभरती मानवता की त्रासदी बनाता था. एक ऐसी त्रासदी जिस मेँ अपनी भौतिक आकांक्षाओँ की पूर्ति के लिए किए गए लोभपूर्ण कृत्योँ के बदले मानव को क्षमा मिल ही नहीँ सकती थी. उस का त्रासद अंत सुनिश्चित था.

फ़ाउस्ट का पात्र मारलो का अपना गढ़ा पात्र नहीँ था…

मध्यकालीन यूरोप की दंतकथाओँ से जुड़े फ़ाउस्ट का असली नाम जार्ज (George) या योहान (Johann) फ़ाउस्ट माना जाता है (गोएथे ने इसे बदल कर हेनरिखHeinrich कर दिया). कहते हैँ कि कथानायक फ़ाउस्ट का जन्म १४८० मेँ व्यर्टमबैर्ग (Würtemberg) मेँ क्लिनटलिनगन (Knittlingen) नामक छोटे से शहर के एक निर्धन परिवार मेँ हुआ था. उस की मृत्यु १५४६ मेँ हुई. इस प्रकार फ़ाउस्ट जरमनी के ईसाई सुधारक मार्टिन लूथर (Martin Luther) (१४८३-१५४६) का समकालीन हुआ. (फ़ाउस्ट की दंतकथाओँ मेँ लूथरवादी सुधारवादी तत्व हैँ.)

पुरातन विश्वासोँ के उस अवसान काल मेँ आधुनिक विज्ञान के क़दम धीर धीरे बढ़ रहे थे. वैज्ञानिकोँ की अनोखी उपलब्धियोँ को आम आदमी जादूगरी ही समझता था और उन्हेँ पुरातन ग़ैर-ईसाई विश्वासोँ का साकार प्रदर्शन मानता था. उसे लगता था कि इन वैज्ञानिकोँ ने शैतान से या दुष्ट आत्माओँ से कोई गुप्त समझौता कर रखा है. इसी विस्तृत अंधविश्वास का परिणाम था कि लैटिन और ग्रीक आदि प्राचीन भाषाओँ से परिचित विद्वान और अधकचरे वैज्ञानिक जनता को मूर्ख बनाते और ठगते घूमा करते थे. अकसर उन्हेँ अपनी तथाकथित क्षमताओँ मेँ विश्वास भी होता था.

जादू टोने और तंतर मंतर मेँ विश्वास चरम बिंदु पर था. हर तरह के शैतानोँ के अस्तित्व मेँ लोगोँ का विश्वास था, जैसे कि शाप का शैतान, शादी का शैतान, शिकार का, शराब का, मकान का शैतान, यहाँ तक कि कपड़ोँ का और पतलूनोँ का शैतान… स्वयं मार्टिन लूथर को लगता था कि वह भूतप्रेतोँ और दुष्ट आत्माओँ से घिरा है.

 

किसी संबंधी की कृपा से फ़ाउस्ट डाक्‍टरी पढ़ने के लिए क्रकौव (Cracow) विश्विद्यालय मेँ दाख़िल हुआ. वहीँ उस ने जादूगरी भी सीखी – उन दिनोँ जादूगरी को भी ज्ञान की एक शाखा माना जाता था और वह बाक़ायदा पढ़ाई जाती थी. फ़ाउस्ट ने यूरोप के कई भागोँ की यात्रा की. उस के बारे मेँ मैलंक्‍टन (Melanchthon) के शिष्य मैनलियस (Manlius) ने लिखा है – जब हमारे शहर विटनबैर्ग के ड्यूक जान ने फ़ाउस्ट को क़ैद करने का हुक्म दिया तो यह बच निकला. इसी प्रकार यह नूरेमबैर्ग (Nuremberg) से भी भाग पाया था. यह जादूगर, यह जघन्य पशु, यह फ़ाउस्ट कई शैतानोँ का नाबदान है, यह डीँग मार कर कहता है कि अपने चमत्कार से ही उस ने (जरमन) साम्राज्य की सेनाओँ को इटली पर विजय दिलवाई थी.

कहा जाता है कि एक बार उस ने दावा किया कि वह अपने ज्ञान के सहारे प्‍लेटो और अरस्‍तू के संपूर्ण साहित्य का पुनरुद्धार कर सकता है – वह भी पहले से बेहतर अवस्था मेँ. एक बार उस ने दावा किया कि वह ईसा मसीह के तमाम चमत्कार स्वयं कर के दिखा सकता है. एक धनी आदमी को तो फ़ाउस्ट के कर्तृत्‍व मेँ यहाँ तक भरोसा हो गया था कि वह उसे अपने नगर मेँ शिक्षक के पद पर रखना चाहता था ताकि बच्चे कुछसीख सकेँ. लेकिन एक बच्चे के साथ अभद्र यौन आचरण के कारण फ़ाउस्ट को वहाँ से भागना पड़ा.

फ़ाउस्ट ने हाइडलबैर्ग (Heidelberg) और एरफ़ुर्ट (Erfurt) के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयोँ मेँ भी शिक्षा पाई थी. कहा जाता है कि एरफ़ुर्ट मेँ ही फ़ाउस्ट ने मेज़ोँ मेँ छेद कर के शराब बहाई थी. यह दृश्य गोएथे ने अपने विश्वविद्यालय के नगर लाइपत्सिग (Leipzig) मेँ रखा है. कहा जाता है कि एरफ़ुर्ट मेँ ही फ़ाउस्ट होमर के काव्य पर व्याख्यान दिया करता था और छात्रोँ के सामने उस के काव्य के पात्रोँ को सजीव ले आया करता था.

फ़ाउस्ट लोगोँ का भविष्य  भी बताता था. अनेक लोगोँ का कहना था कि उन के साथ बिल्कुल वही हुआ जैसा कि पहले से फ़ाउस्ट ने बताया था. अपने जीवन काल मेँ ही वह दंतकथा बन गया था. तमाम यूरोप के बड़े लोग उस से संपर्क रखना चाहते थे. उसे सुधारने के लिए एक फ्राँसिस्‍कन पादरी भेजा गया. लेकिन फ़ाउस्ट ने शैतान के साथ अपना क़रार तोड़ने से इनकार कर दिया. कहते हैँ कि उस ने इस इनकार के दो कारण बताए१) जो क़रार मैँ ने स्वयं अपने लहू से हस्ताक्षर कर के किया है उसे मैँ नहीँ तोड़ूँगा. २) शैतान ने अपना वचन बख़ूबी निभाया है, मैँ भी अपना वचन पूरा करूँगा. परिणामतः फ़ाउस्ट को एरफ़ुर्ट से निष्कासित कर दिया गया.

प्रमुख प्रोटेस्‍टैंट सुधारक मैलंक्‍टन ने कहा है कि विटनबैर्ग मेँ फ़ाउस्ट के साथ एक कुत्ता हुआ करता था, और यह कुत्ता और कोई नहीँ स्वयं शैतान था. कभी कभी यह कुत्ता इनसान का रूप घर कर फ़ाउस्ट का सेवक बन जाता था. (गोएथे के नाटक मेँ फ़ाउस्ट के पास शैतान पहले एक कुत्ते के ही रूप मेँ आता है.)

१५४० के आसपास जब फ़ाउस्ट मरा, तो कहते हैँ कि उस का शव औँधा पड़ा पाया गया. उस की मृत्यु बड़ी विकराल हुई थी. माना जाता है कि क़रार के अनुसार फ़ाउस्ट का भोग काल पूरा होने पर शैतान उस की आत्मा को उस के शरीर से ज़बर्दस्‍ती निकाल कर नरक ले गया था.

फ़ाउस्ट के अंतिम समय का एक अन्य वर्णन संक्षेप मेँ इस प्रकार है -

फ़ाउस्ट ने अपना सब कुछ अपने समकालीन विद्वान और शिष्य वाग्नर को दे दिया और उसे आदेश दिया कि वह फ़ाउस्ट का इतिहास लिखे. अपने जीवन के अंतिम दिन फ़ाउस्ट ने विटनबैर्ग नगर के बाहर एक गाँव मेँ अपने शिष्योँ को सुबह जलपान करवाया और शाम को भोज दिया. उस ने उन से कहा कि वे सब ईसा मसीह के प्रति अपने विश्वास मेँ अडिग रहेँ और हर मोड़ पर शैतान से जूझते रहेँ. इस के बाद फ़ाउस्ट शयन कक्ष मेँ चला गया. रात को तूफ़ान जैसा भयानक शोर हुआ. सुबह फ़ाउस्ट के क्षतविक्षत अंश कमरे की दीवारोँ से चिपके और बाहर आँगन मेँ बिखरे पाए गए. फ़ाउस्ट का अंतिम संस्कार कर के शिष्य जब विटनबैर्ग लौटे तो उन्हेँ फ़ाउस्ट की संपूर्ण आत्‍मकथा लिखी लिखाई मिली. उस मेँ केवल उस की मृत्यु का वर्णन नहीँ था. वह उन्होँ ने अपने शब्दोँ मेँ जोड़ दिया.

यह वर्णन स्‍पीस (Spiess) की फ़ौल्‍क्‍सबूख (Volksbuch) पर आधारित है, जो उस की आत्मकथा होने का दावा करती है. (मारलो के नाटक मेँ फ़ाउस्टस का अंतिम विलाप किसी ऐसे ही दृश्य का काल्पनिक चित्रण है.)

 

फ़ाउस्ट की कहानी का यह प्राचीनतम रूप १५८७ मेँ प्रकाशित हुआ था. इस मेँ उस के कई चमत्कारोँ का वर्णन है. इस मेँ फ़ाउस्ट का नाम योहान है. इस किताब के आरंभ मेँ इस के विषय का बखान इस प्रकार किया गया था –

कुख्‍यात मायावी जादूगर डाक्टर योहान फ़ाउस्ट का इतिहास. कैसे उस ने शैतान के हाथोँ अपने को बेच डाला. उस के अनोखे निजी अनुभव और कारनामे जो शैतान के हाथोँ सही दंड भुगतने से पहले उस ने किए और कर दिखाए. मुख्यतः उस के अपने दस्‍तावेजों पर आधारित. दंभियोँ, शंकालुओँ और नास्तिकोँ को सबक़ सिखाने के लिए वर्णित.

इस पुस्तक की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वर्ष १५८७ मेँ ही प्रकाशित इस के पाँच संस्‍करण आज भी उपलब्‍ध हैँ. अगले वर्ष १५८८ मेँ इस कथा का एक तुकांत संस्‍करण प्रकाशित हुआ. इन संस्‍करणोँ के १६ पुनर्मुद्रण आज तक सुरक्षित हैँ. फ़ाउस्ट की ख्याति और इन पुस्तकोँ की प्रतियाँ तत्‍कालीन इंग्‍लैंड तक बड़ी शीघ्रता से पहुँच गई होँगी. १५८८ मेँ वहाँ फ़ाउस्ट पर एक बैलड प्रकाशित करने की अनुमति दी गई.

फ़ाउस्ट और मारलो का नाटक

प्रसिद्ध अँगरेजी नाटककार और कवि क्रिस्‍टोफ़र मारलो (१५६४-९३) ने अपने नाटक ट्रैजिकल हिस्‍ट्री आफ़ डाक्टर फ़ाउस्टस के द्वारा इस कथा को उच्चतम और कालातीत साहित्‍यिक स्तर पर पहुँचा दिया. शैक्‍सपीयर से पहले के अँगरेजी नाटकोँ मेँ यह सर्वोत्तम माना जाता है.

मारलो के नाटक मेँ यूरोप की दंतकथाओँ मेँ शैतान की सेना का प्रमुख सदस्‍य मैफ़िस्टोफ़िलीज़ (Mephistopheles) एक साधु के छद्मवेष मेँ आता है. वह स्वयं शैतान नहीँ है, बल्‍कि लूसीफ़र (Lucifer) का प्रतिनिधि है. (लूसीफ़र का शब्‍दार्थ है भोर का तारा यानी प्रातःकालीन शुक्र. पश्‍चिमी मिथक में उसे शैतान कहा जाता है. भगवान के विरुद्ध विद्रोह करने वाले फ़रिश्‍तों का वह नेता था. हमारे यहाँ शुक्र को असुरोँ का आचार्य माना गया है.)

 यही कारण है कि मारलो मेँ फ़ाउस्ट और मैफ़िस्टोफ़िलीज़ के बीच दो बैठकेँ होती हैँ – क्योँ कि क़रार की शर्तोँ पर मैफ़िस्टोफ़िलीज़ के लिए लूसीफ़र से सहमति लेना आवश्यक था. मारलो की ही तरह गोएथे ने भी दो बैठकेँ रखी हैँ, लेकिन गोएथे के मैफ़िस्टोफ़िलीज़ को किसी उच्‍चाधिकारी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीँ है.

 

आज फ़ाउस्ट जिस भावना का प्रतीक है, उसे मारलो ने साहित्‍यिक रूप दिया और गोएथे ने चरम पर पहुँचाया. मारलो के फ़ाउस्टस की आकांक्षा मात्र सस्ते छिछले सांसारिक भोग और अर्थहीन अमरत्‍व नहीँ है, उस के मन मेँ महान विचार और उच्च आकांक्षाएँ हैँ. जब शैतान कहता है कि मोक्ष को त्यागने से पहले वह अच्छी तरह सोच विचार ले, तो फ़ाउस्टस उसे डपट बैठता है. उसे न तो नरक मेँ विश्वास है, न शैतान मेँ. फिर भी मारलो का फ़ाउस्टस अंत समय मेँ पूरी तरह भयभीत है. नरक की यातना से बचने के लिए वह जादू मंतर की तमाम पोथियाँ जला डालना चाहता है. गोएथे का फ़ाउस्ट भी अंत समय मेँ जादू मंतर से दूर हो जाना चाहता है.

मारलो का फ़ाउस्टस कट्टर प्रोटैस्‍टैंट है. वक़्त आने पर वह पोप और जरमन साम्राज्य के बीच विवाद मेँ पोप-विरोधी के रूप मेँ हस्‍तक्षेप करता है. उस की आकांक्षाएँ हैँ – संदेहोँ से मुक्ति, संपूर्ण ज्ञान और ऐश्वर्य का स्‍वामित्व, शत्रुओँ से जरमनी का त्राण, राइन नदी का प्रवाह मोड़ कर उसे विटनबैर्ग के चारोँ ओर बहाना, छात्रोँ को उपयुक्त वेशभूषा मुहैया कराना, पार्मा के राजकुमार का निष्कासन कर के स्वयं सभी प्रदेशोँ का अधिपति बनना, और डचोँ के जंगी पोतोँ से बेहतर पोत बनाना… मारलो के फ़ाउस्टस की कुछ उपलब्धियाँ हैँ – सम्राट के मनोरंजन के लिए सिकंदर और उस की प्रेमिका को पेश करना, छात्रोँ के सामने हेलेना को उपस्थित करना और बाद मेँ उसे अपनी प्रेयसी बनाना. इन मेँ से कई दृश्य भिन्न रूप से गोएथे के नाटक मेँ भी हैँ. क्रोध मेँ आ कर मारलो का फ़ाउस्टस मैफ़िस्टोफ़िलीज़ को आदेश दे कर एक बूढ़े को यंत्रणा भी दिलवाता है. गोएथे का फ़ाउस्ट दिल से बहुत भला है. वह किसी को सता नहीँ सकता. नाटक के अंत मेँ जो वृद्ध पादरी दंपती का नाश होता है, वह फ़ाउस्ट की अपनी इच्छा के विपरीत ही होता है.

 

मारलो का फ़ाउस्टस नाटक न केवल इंग्‍लैंड मेँ खेला गया, बल्‍कि वहाँ के कलाकार इसे जरमनी के नगर नगर तक ले गए, जहाँ धीरे धीरे यह नाटक कठपुतलियोँ का खेल बन गया. इस के मंच और कठपुतली संस्‍करण पूरे यूरोप मेँ खेले जा रहे थे. फ़ाउस्ट के चमत्कारोँ को दिखाने के लिए तकनीकी कौशल भी उपयोग मेँ लाया जाने लगा था, जिसे मशीन कामेडी या यांत्रिक प्रभाव भी कहा जाता है. स्वयं गोएथे की तरुण अवस्था मेँ यह उस के नगर फ्राँकफ़ुर्ट मेँ भी खेला जा रहा था.

 

अठारहवीँ सदी तक यूरोप के धार्मिक संघर्ष और वादविवाद शांत हो चले थे. सहनशीलता, सौमनस्य, आपसी समझ और शांति का नया वातावरण बन रहा था. इस नाटक मेँ जो उग्र प्रोटैस्‍टैंट तत्व था, काथलिक वियना मेँ मंचन के लिए वह दबा दिया गया था. मैफ़िस्टोफ़िलीज़ का साधुई चोग़ा उतार कर उसे स्‍पेनी दरबारी का रूप दे दिया गया था. गोएथे के नाटक मेँ मैफ़िस्टोफ़िलीज़ पहली बार घुमंतू विद्वान के रूप मेँ आता है, लेकिन मुख्य कथाक्रम मेँ उसे दरबारी वेशभूषा मेँ रखा गया है.

योहान लुडविग फ़ौन गोएथे

विश्व को अपनी बहुमुखी प्रतिभा से समृद्ध करने वाले महाकवि, नाटककार, उपन्यासकार और वैज्ञानिक योहान वोल्‍फ़गांग फ़ौन गोएथे (Johann Wolfgang von Goethe) (जन्म २८ अगस्‍त १७४९ फ्राँकफ़ुर्ट Frankfurt - निधन २२ मार्च १८३२ वाइमार Weimar) का बचपन सुखी और सुरक्षित वातावरण मेँ बीता. १७६५ मेँ क़ानून की शिक्षा के लिए वह लाइपत्सिग गए. वहाँ छात्रोँ की तरह उच्छृंखल जीवन जिया. (यह वही लाइपत्सिग नगर है जहाँ के साइरनेँ मेँ मैफ़िस्टोफ़िलीज़ फ़ाउस्ट को ले कर जाता है और नौजवानोँ की उच्छृंखल जीवन शैली से बहलाना चाहता है लेकिन सफल नहीँ होता.) बीमार पड़ जाने के कारण स्वास्थ्य लाभ के लिए गोएथे काफ़ी लंबे काल के लिए फिर फ्राँकफ़ुर्ट रहे. गोएथे के आरंभिक संगीतबद्ध गीतोँ का संकलन १७६९ मेँ प्रकाशित हुआ.

स्‍ट्रासबुर्ग (Strasbourg) शहर मेँ १७७०-७१ मेँ क़ानून की शिक्षा पूरी की. वहीँ शैक्‍सपीयर कालीन काव्य नाटकोँ के प्रति उन मेँ अनुराग जगा, और जरमनी के मध्यकालीन इतिहास और लोककाव्य मेँ रुचि उत्‍पन्न हुई. इसी काल मेँ एक पादरी की बेटी फ़्रीडरिके ब्रियोन (Friederike Brion) के प्रति उन्होँ ने लोकगीतोँ की धुनोँ पर गीत लिखे, और स्‍विस-फ्राँसीसी दार्शनिक जाँ जाक़ रूसो (Jean Jacques Rousseau - 1712–78) और डच-यहूदी दार्शनिक स्‍पिनोज़ा (Baruch or Benedict Spinoza - 1632–77) ने गोएथे के रहस्यवाद और पल पल परिवर्तित प्रकृति से प्रेम को गहरा रंग दिया. इसी काल मेँ गोएथे ने जीवजंतुओँ और पादपोँ का अध्ययन आरंभ किया, जो जीवन भर उन की रुचि का विषय बना रहा.

उद्दाम भावनाओँ से भरपूर नाटक गौट्ज़ फ़ौन बेरलिनशिंगन  (Gotz von Berlinchingen, 1773) नाटक ने लोगोँ का ध्यान गोएथे की ओर आकर्षित किया. इस से भी अघिक महत्वपूर्ण कृति थी उपन्यास डी लाइडन डेस युंगन वेर्थर्स (Die Leiden des jungen Werthers, 1774) (युवा वर्थर्स की शोकगाथा). गोएथे ने यह उपन्यास तब लिखा था जब वह सुंदरी शार्लोटे बुफ़ (Charlotte Buff) से असफल प्रेम से त्रस्‍त हो कर आत्‍महत्या की कगार तक पहुँच चुके थे. इस उपन्यास से गोएथे की ख्याति चतुर्दिक फैल गई. इस उपन्यास के अनेक अनुवाद हुए. इस के लेखन से एक ओर गोएथे को जीवन मेँ स्थिरता मिली, तो दूसरी ओर पाठकोँ पर विनाशोन्‍मुखी प्रभाव पड़ा.

१७७५ मेँ ज़ाक्‍से-वाइमार (Saxe-Weimar) के ड्यूक चार्ल्स आगस्टस ने गोएथे को आमंत्रित किया. यहाँ दस वर्ष तक वह राज्य के प्रधान मंत्री रहे. इस के बाद शेष जीवन भी वह वहीँ रहे और राज्य के नाट्य मंडल और वैज्ञानिक संस्‍थानोँ के निदेशक रहे.

१७८६-८८ मेँ इटली यात्रा के दौरान गोएथे पर गहरा इटालवी सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा. यह उन के अनेक नाटकोँ और काव्य मेँ लक्षित है.

१७९२ मेँ ड्यूक चार्ल्स आगस्टस (Charles Augustus) के साथ सरकारी इतिहासकार की हैसियत से वह क्रांतिकारी फ्राँस के विरुद्ध युद्ध मुहिम पर गए. उन्हेँ फ्राँसीसी क्रांति के आदर्श तो अच्छे लगते थे, लेकिन उस के उद्देश्योँ की पूर्ति के लिए जो उग्र मार्ग चुना गया था, वह उस के विरुद्ध थे. स्वयं अपने राज्य मेँ वह सुधारवादी थे. बाद मेँ नेपोलियन युद्ध मेँ उन्होँ ने अपने को उग्र जरमन राष्‍ट्रवाद से दूर रखा. (फ़ाउस्ट मेँ लाइपत्सिग नगर के साइरनेँ के एक संवाद मेँ इस की झलक पाई जाती है.)

गोएथे अनेक लोकप्रिय उपन्यासोँ के लिए विख्यात हैँ. उन मेँ से कुछ हैँडी वालफ़रवांडशाफ़्‍टन (Die Wahlverwandtschaften - १८०९) तथा वील्‍हैल्‍म माइस्टर (Wilhelm Meister) उपन्यास शृंखला (इस शृंखला का पहला उपन्यास १७९६ मेँ प्रकाशित हुआ, अंतिम १८२९ मेँ).

 

गोएथे के जीवन मेँ अनेक महिलाएँ आईँ. इन मेँ शार्लौटे फ़ौन श्‍टाइन (Charlotte von Stein) सर्वाधिक बुद्धिशाली थीँ. १८०६ मेँ गोएथे ने क्रिस्‍टीआने वुलपिउस (Christiane Vulpius) से विवाह किया. उन दोनोँ को एक पुत्र प्राप्त हुआ. १८२२ मेँ गोएथे ने नवयुवा सुंदरी उलरिक फ़ौन लेवेत्‍साओ (Ulrike von Levetzow) से विवाह का प्रस्‍ताव रखा, जो ठुकरा दिया गया. इस से निराश हो कर उन्होँ ने उन्माद त्रिपिटक  (Trilogie der Leidenschaft) की कविताओँ रचना की. उन का सर्वोत्तम काव्य संग्रह वैस्टऔस्टलिशर (Westostlicher Diwan) दीवान माना जाता है. इस मेँ उन की नवयुवा मित्र मारिआने फ़ौन विलेमर (Marianne von Willemer) ज़ुलाऐका (Suleika) के रूप मेँ उपस्थित है. यह दीवान जरमन काव्य मेँ एक नए मोड़ के रूप मेँ आया. इस पर फ़ारसी कवि हफ़ीज़ का स्पष्ट प्रभाव है.

धीरे धीरे गोएथे सक्रिय राष्‍ट्रीय, राजनीतिक, यहाँ तक कि साहित्‍यिक गतिविधियोँ से अपने को अलग करते चले गए. वह एक ऐसे पूज्य महर्षि बनते चले गए जिन के दर्शन के लिए तमाम यूरोप उमड़ने लगा.

गोएथे का जीवन संपूर्ण ज्ञान विज्ञान और कला की त्रिवेणी था. वह अपना जीवन मानव की क्षमताओँ का एक अन्यतम उदाहरण बनाना चाहते थे. इस मेँ उन्हेँ महान सफलता मिली.

गोएथे का फ़ाउस्ट

गोएथे की सर्वाधिक स्‍मृत कृति फ़ाउस्ट जितना नाटक है, उतना ही महाकाव्य भी. यह उन के संपूर्ण जीवन की उपलब्धि है. इस के विकास का इतिहास भी अपने आप मेँ बड़ा रोचक है.

 

२४-२५ साल की उमर मेँ १७७३-७५ मेँ गोएथे ने इस के पहले भाग का एक संक्षिप्त प्रारूप लिखा – उरफ़ाउस्ट (Urfaust) . यह उन की मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ.

४१ वर्ष की उमर मेँ १७९० मेँ एक अंश (फ़्रैगमैंट) का प्रकाशन हुआ, और उरफ़ाउस्ट का पुनर्संस्‍करण लिखा.

५१ साल की उमर मेँ १८०० मेँ हेलेना वाले अंश का प्रकाशन हुआ.

५९ वर्ष का होने पर १८०८ मेँ फ़ाउस्टभाग एक का प्रकाशन हुआ.

८३ वर्ष की वय मेँ गोएथे के देहांत के तत्काल बाद वाइमार मेँ फ़ाउस्ट – भाग दो का प्रकाशन हुआ.

 

स्पष्ट है कि एक पूरे जीवन काल मेँ लिखा और माँजा गया यह कोई ऐसा नाटक नहीँ है जिसे आसानी से किसी परिभाषा या सीमा मेँ बाँधा जा सके – न तकनीक की, न विधा की, न काल की. स्वयं गोएथे ने कहा है कि इस का विकास किसी पूर्वनिश्चित और सुपरिभाषित ढाँचे पर न हो कर, विशाल वृक्ष की शाखाओँ प्रशाखाओँ के प्रसार की तरह हुआ है. बीज विकसित हो कर जिस तरह हर ओर फैलता रहता है, वैसे ही यह नाटक बढ़ता गया.

उदाहरण के लिएपहले फ़ाउस्ट मेँ आरंभ मेँ केवल स्वर्ग मेँ पूर्वपीठिका (Prologue in Heaven) थी, जिस मेँ भगवान और शैतान के बीच शर्त लगती है. कालिदास का संस्‍कृत नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम्  गोएथे ने अपने जीवन मेँ काफ़ी बाद मेँ पढ़ा. इस से प्रभावित हो कर फ़ाउस्ट के लिए उन्होँ ने संस्‍कृत नाटकोँ की शैली की एक प्ररोचना लिखी. इस मेँ सूत्रधार, कवि और विदूषक के बीच नाटक विधा के उद्देश्योँ के बारे मेँ बहस जैसा वार्तालाप है. इसे मंच पर प्राक्‍कथन  (Prelude on the Stage) कहा जाता है. फ़ाउस्ट मेँ यह समर्पण और पूर्वपीठिका के बीच मेँ है.

 

आज फ़ाउस्ट शब्द का अर्थ हैएक ऐसा आदमी जो कर्मठ है, महाज्ञानी है और अपने उद्देश्योँ का प्राप्‍ता है. कर्म, ज्ञान और उपलब्धि के लिए उस के मन मेँ कभी शांत न होने वाली ललक है, अदम्य आकांक्षा है. उस के मन का मर्म हैअसंतोष.

गोएथे के माध्यम से हम आज जिस फ़ाउस्ट को जानते हैँ, उस मेँ तीन प्रमुख तत्व हैँ –

 

१) विलक्षण शक्तियोँ के लिए शैतान से समझौता करने वाला फ़ाउस्ट

२) भगवान का सच्चा सेवक फ़ाउस्ट जिसे कुमार्ग पर ले जाने की कोशिश करने की अनुमति तो शैतान को है, लेकिन जिसे नष्ट करना शैतान की क्षमता से परे है

३) भोलीभाली ग्रेचन (मार्गरेट) का प्रेमी फ़ाउस्ट, जो अपनी प्रेमिका के पतन का कारण बनता है, लेकिन जिस का निश्छल प्रेम अंततः फ़ाउस्ट के उद्धार का साधन बनता है

 

इस प्रकार फ़ाउस्ट की कथा को वर्तमान रूप गोएथे ने ही दिया. गोएथे से पहले फ़ाउस्ट का महत्व शैतान से उस के समझौते के भयंकर दुष्परिणाम के कारण था, जिस से डर कर आदमी नेकी के मार्ग पर चले. गोएथे ने इस मेँ भगवान और शैतान के बीच लगी शर्त का नया तत्व जोड़ दिया. यह शर्त नाटक के आरंभ मेँ ही यह सुनिश्चित कर देती है कि अंत मेँ फ़ाउस्ट का पतन नहीँ हो पाएगा, वह अपने को बचा लेगा या कोई शक्ति उसे बचा लेगी. इस प्रकार फ़ाउस्ट की कहानी पतनशील मानवता के लिए उद्धार का आशावादी वादा बन जाती है.

यह अनुवाद

जैसा कि मैँ ने आरंभ मेँ ही क्षमा माँगते कहा, मैँ जरमन भाषा नहीँ जानता. मैँ ने कभी पचासादि दशक मेँ गोएथे के फ़ाउस्ट का जो अँगरेजी अनुवाद पढ़ा था, वह उस के पहले भाग का कोई पाकेट बुक संस्‍करण था, शायद डबलू. ऐच. औडन द्वारा प्रकाशित. अब वह मेरे पास नहीँ है.

समांतर कोश (प्रकाशक: नेशनल बुक ट्रस्ट – १९९) के लिए शब्दोँ के चयन और उन्हेँ किसी सहज क्रम से सँजोने की प्रक्रिया बड़ी श्रमसाध्य और ऊबाऊ थी, लेकिन वह मुझे और मेरी पत्नी कुसुम को यंत्रवत् संचालित कर रही थी. उस से उबरने के लिए कभी कभी हमेँ करने के लिए कुछ औरचाहिए होता था. कुसुम को तो मूड परिवर्तन के लिए घर के काम भी करने होते थे. कभी कभी मैँ उन का हाथ बँटाता, कभी खुरपा ले कर क्यारी मेँ बैठ जाता, या शाम को कुछ साहित्य पढ़ता. मन होता तो कोई अनुवाद करने लगता. (स्वतंत्र लेखन संभव नहीँ था. किसी भी विषय पर लिखना हो तो मैँ उस के बारे मेँ लगातार सोचते रहने के लिए मजबूर हो जाता हूँ. ऐसा करने से समांतर कोश की जटिल समस्याओँ और चुनौतियोँ से मन हट जाता था.) मेरा शैक्‍सपीयर के जूलियस सीज़र का भारतीय रूपांतर विक्रम सैंधव  (प्रकाशक: राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय – १९९) और काव्यानुवाद दिल के दौरे के बाद ऐसे ही ऊबाऊ क्षणोँ से पार पाने का परिणाम है. फ़ाउस्ट  का अनुवाद वह पूरा करने का बाद ही हाथ मेँ लिया था.

इस प्रकार १९९०-९१ मेँ जब मैँ ने फ़ाउस्ट का अनुवाद आरंभ किया तो सब से पहले जो अँगरेजी संस्‍करण मुझे मिला उस मेँ से मैँ ने वह अंश अनूदित किया, जिस मेँ फ़ाउस्ट से पहली मुलाक़ात के बाद मार्गरेट या ग्रेचन अपने कमरे मेँ उस के बारे मेँ सोच रही हैकोई बतला दे मुझे वह कौन था?फिर मैँ ने उसी संवाद के आसपास के कुछ अन्य संवाद अनूदित किए. मुझे याद है कि उन मेँ वह संवाद भी था जिस मेँ मार्गरेट की कुटिया मेँ आरामकुरसी मेँ धँसा फ़ाउस्ट उस (कुरसी) के विगत काल के बारे मेँ सोच रहा हैले, मुझे थाम ले पसरी बाँहोँ मेँ, तू ने थामे पिछले सुख दुःख सारे

 

मैँ ने फ़ाउस्ट के अनेक अँगरेजी अनुवाद एकत्रित किए.

 

1. Faust – The Tragedy – Part One. Translated for the English-speaking stage by John Prudhoe, Professor of Drama in the University of Manchester. Published by Manchester University Press: Barnes & Noble Books, New York. (A division of Harper & Row Publishers Inc.). 1974

2. Faust : A Tragedy. translated, in the original meters, By Bayard Taylor. London: Fredrick Warne And Co., Bedford Street, Strand.

3. Faust A Tragdey. background and sources / the author on the drama / contemporary reactions / modern criticism. Translated by Walter Arndt (Dartmouth College). Edited by Cyrus Hamlin, Victoria College, University of Toronto. W.W. Norton & Comapnty Inc, New York

4. The UrfaustGoethe”s Faust in the original form. translation and introduction by douglas m. scott. Copyright 1958. Published by Barron”s Educational Series, Inc., Great Neck, N.Y.

 

उन्हेँ पढ़ कर फ़ाउस्ट और गोएथे की पृष्‍ठभूमि को समझने की कोशिश की. मैँ ने प्रसिद्ध संगीतकार रोबर्ट आलेक्‍सांडर शूमन्न (Robert Alexander Schumann - 1810-56) द्वारा फ़ाउस्ट के संस्‍करण और फ्राँसीसी मंच निर्देशक चार्ल्स फ्राँस्‍वा गूनो (Charles Francois Gounod - 1818-93) द्वारा प्रस्तुत विख्यात आपेरा के शब्दोँ को समझने की कोशिश भी की. अपनी विधा की समय सीमाओँ के कारण उन्होँ ने मूल मेँ से केवल पाँच छः दृश्योँ के संक्षिप्त रूप ही रखे थे. इन के अतिरिक्त मैँ ने इंटरनैट पर फ़ाउस्ट के कई इंग्लिश अनुवाद भी यदाकदा पढ़े.

मैँ ने जान प्रूडो और बेयार्ड टेलर के अनुवादोँ को आधार बनाया. लेकिन हर भाव के लिए अन्य अनुवादकोँ ने जो लिखा है, वह देख कर मुझे जिस अनुवाद मेँ जो बात सब से ज़्यादा पसंद आती, वह मैँ अपनी काव्य भाषा मेँ कहने की कोशिश करता.

 

मैँ ने विक्रम सैंधव की भूमिका मेँ अपनी अनुवाद प्रक्रिया पर काफ़ी विस्तार से लिखा है. यहाँ उस मेँ से बस इतना ही दोहराऊँगा कि मेरा पहला प्रारूप बहुत ही टूटा फूटा होता हैमूल के भावोँ का उलथा कहीँ पद्य मेँ और कहीँ गद्य मेँ नोट कर लेना मात्र. अकसर वह ग़लत भी हो सकता है. दूसरी बार मूल से इस पहले प्रारूप का मिलान करता हूँयह देखने के लिए कि कहीँ अर्थ का अनर्थ तो नहीँ हो गया. इस के बाद ही अपने लिखे से प्रेरित हो कर काव्य की रचना की प्रक्रिया शुरू होती है.

 

गोएथे ने फ़ाउस्ट मेँ छंदोँ की छठा बिखेर रखी है. हर आवश्यकता के लिए अलग छंद का उपयोग किया गया है. जरमन छंदोँ मेँ तुक विधान बहुत पेचीदा होता है. मैँ अपने अनुवाद को गोएथे के मूल छंदोँ के निकट रखना चाहता था. लेकिन जरमन भाषा से अनभिज्ञ होने के कारण मुझे मूल छंदोँ का आभास केवल उन के अँगरेजी समकक्ष छंदोँ से ही हो सकता था. बिल्कुल मूल जैसे हिंदी छंदोँ की रचना मेरे जैसे आधेअधूरे कवि के लिए पूरी तरह संभव नहीँ थी. फ़ाउस्ट का मुख्य छंद क्‍नौटल फ़ैरज़े (Knottel verse) मुझे बहुत अच्छा लगा. यह तुकांत छंद है. इस मेँ किसी पंक्ति या चरण मेँ वज़न या लंबाई की सीमा नहीँ है. पंक्तियाँ छोटी बड़ी हो सकती हैँ, लेकिन तुकांत होती हैँ. हिंदी की वर्तमान बोली मेँ इसे हम तुकांत रबड़ छंद कह सकते हैँ.

गोएथे के छंद अपने काव्य और ध्वनि के अनोखे लालित्‍य के लिए प्रसिद्ध हैँ. वह मेरे लिए पूर्णतः अपरिचित है. परिचित होता तो भी काव्य का यह शब्‍दालंकारीय पक्ष अनुवादातीत होता है. अतः मेरे लिए मुख्य था – उन छंदोँ मेँ अभिव्यक्त भाव. मैँ ने उसी पर ज़ोर दिया. हाँ, छंदोँ की विविधता दर्शाने के लिए अँगरेजी अनुवादोँ मेँ जो छंद थे, उन से मिलते जुलते कई छंद मैँ ने बनाए. इस के लिए मैँ ने मुख्यतः बेयर्ड टेलर के अनुवाद का सहारा लिया.

अपनी तरफ़ से अंतिम प्रारूप बन जाने पर मैँ ने उस अनुवाद को उठा कर अलमारी मेँ बंद कर दिया. लगभग दो साल बाद १९९४ मेँ समांतर कोश की डाटा एंट्री के काम से कुछ समय ख़ाली मिलने पर अपने सहायक दलीप से उसे कंप्‍यूटर मेँ टँकवाया, और फिर बिना देखे बिना पढ़े, वहीँ रहने दिया. इस के बाद दो वर्षोँ तक मैँ स्वयं समांतर कोश के लिए अतिरिक्त डाटा कंप्‍यूटर मेँ दाख़िल करता रहा था. यह काम १९९६ के सितंबर-अक्तूबर तक चला, जब उस के पेजोँ के प्रिंट प्रकाशकोँ को दे दिए गए.

 

१९९९ मेँ मैँ ने कंप्‍यूटर की फ़ाउस्ट वाली फ़ाइल को देखना, पढ़ना और संपादित करना शुरू किया. अपने लिखे को लंबे समय तक अनदेखा पड़ा रहने देने का एक लाभ यह होता है कि अपने लिखे शब्दोँ से हमारा मोह टूट जाता है. अपनी कमियाँ और चूकेँ हमेँ स्वयं नज़र आने लगती हैँ और हम बड़ी निर्ममता से उसे परिष्कृत कर सकते हैँ. इस मेँ चार पाँच महीने लगे. आरंभ मेँ मैँ ने संपूर्ण पहले भाग का और दूसरे भाग के पाँचवेँ अंक का अविकल अनुवाद किया था.

दूसरे भाग के पहले से ले कर चौथे अंक तक का अनुवाद १९९९ मेँ आरंभ हो कर अप्रैल २००० तक समाप्त हुआ. अगर यह अंश इस पुस्तक मेँ न होता तो गोएथे के मानस आधा अधूरा ही रह जाता. इस अंश को सम्मिलित करने का आग्रह भारतीय ज्ञानपीठ के तत्कालीन मानद निदेशक श्री दिनेश मिश्र का था. यदि बात मुझ पर ही छोड़ दी जाती तो मैँ अपने आलस्य मेँ यह काम कभी पूरा न करता. अतः मैँ श्री दिनेश मिश्र के प्रति विशेष आभार प्रकट करना अपना कर्तव्य समझता हूँ कि उन्होँ ने मुझ से यह पूरा करवा ही लिया.

 

५ मई २००० – सी-१८, चंद्र नगर, ग़ाज़ियाबाद २०१०११

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